Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि सावज्ज जोग विरई: अंतिः कारणं निव्दुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि सावध योग विरति ते अतिः कारण छइ जे अध्ययन. ४०७१.' कायस्थिति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २४., (२७१२.५, ४X३२).
कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: जिम ताहरे दर्शनइ; अंतिः सम्पदा प्रतई आपि.
४०७२" सालभद्रधनारी चोपाई चरित्र, संपूर्ण वि. १९०४ मध्यम, पृ. २०, जैदेना. ले. स्थल. जोधपुर, ले. ऋ. हुकमचन्द,
प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, (२५.५x१२, १४X३९).
धन्नाशालिभद्र रास, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः शासननायक समरीइं; अंतिः मनवञ्छित फल लहस्यइ.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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४०७३.” वीरथुइ अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४ श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. ले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हिस्सा-गा. २९: टबार्थ- गा.२९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - कुछ पत्र, ( २४४१२, ४x२७ ).
सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिंसुणं समणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति.
सूत्रकृताङ्गसूत्र - हिस्सा महावीरजिन स्तुति अध्ययन का टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: पु० पुछता हवा कोण अंतिः इम हुं बै० हु छु.
४०७४. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., ले. स्थल. रामनगर - लाखापुरा, ले. ऋ. सनेहीराम (गुरु ऋ. मानकचन्द), प्र.वि. प्र.पु. मूल ग्रं. १८२१. कहीं कहीं नहीवत् टबार्थ लिखा हुआ है., (२८x१२, ९४५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, (त्रुटक), आदि:-; अंति:
४०७५.” राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. मूल-ग्रं. २५१५; टबार्थ-ग्रं. ५०३९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११.५, ८x४२).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो.
राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ० चउथाआर; अंतिः प्रश्न प्रसवतीनइं.
विवेकमञ्जरी, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोरूढबोधनैकपटु: अंतिः
विवेकमञ्जरी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भविक जीवरुपे जे; अंतिः
४०७६. विवेकमञ्जरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२५+१ (५३) - १२६, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
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(२६.५x११.५, ६४३५).
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४०७७. महिपाल चरित्र चौपाई उपदेशरत्नमाले, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११४-२ (१८,३२ )+७(२४,५५,७१,७७,८७,९० से ९१) = ११९, जैदेना, प्र. वि. ४ / १०८ ढाल, संशोधित (२६.५x१०.५. १२०४२).
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महिपालराजा चौपाई, मु. ऋषिराज, मागु पद्य वि. १९३३ आदि प्रथम तिर्थङ्कर अंतिः वरतै नित कल्याणैजी. ४०७८.) नन्दीसूत्र, अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ व योगनन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ८६, पे. ३, जैदेना., ले.. केसरीचन्द महात्मा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२४.५X१०.५, ५-६X३८-४२),
मु.
पे. १. पे नाम नन्दीसूत्र सह टवार्थ, पृ. १७९अ
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ., पे.वि. अंतर्गत कथाएँ भी दी गयी है.

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