Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 400
________________ आधोइ चातुर्मास बिराजमान पूज्य आ. श्री. वि. देवेन्द्रसूरीश्वरजी म. तथा प.पू.पं. श्री कलापूर्ण वि.म. आदि दूसरे ही दिन भचाउ आ पहुंचे । साधु योग्य विधि कर सब उन महात्मा की निरीहता को वंदन कर रहे थे । पूज्य पंन्यासजी म. कृतज्ञभाव से अंजलि देते गद्गदित हो गये । शतशः वंदन उन निःस्पृह शिरोमणि महात्माको ...! छरी पालक संघ और सूरि-पद प्रदान : लाकडीया के चातुर्मास के बाद पूज्य आचार्यदेवश्री तथा पू. पंन्यासजी म. आदि कटारीया पधारे । पूज्यश्री की निश्रामें वहाँ से संघवी रसिकलाल बापुलालभाई की तरफ से छ'री पालक संघका प्रयाण होनेवाला था । उस प्रसंगमें अनेक गांवों के अनेक अग्रणी महानुभाव वहाँ आये हुए थे । उनके मनमें एक विचार आया : पंन्यासजी म. को आचार्य-पद-प्रदान किया जाय तो बहुत अच्छा रहेगा । समुदायमें इस वक्त जरुरत हैं । पू. आचार्यश्री वयोवृद्ध हैं और पंन्यासजी म. सुयोग्य हैं । अतः उन्हें आचार्यपदवी दी जाये तो अच्छा । सबने साथ मिलकर पूज्य आचार्यश्री को इस बात के लिए विनंती की तब आचार्यश्रीने कहा कि मैं तो कब से आचार्यपद लेने के लिए पंन्यासजी म. को आग्रह कर रहा हूं, परंतु मेरी बात वे नहीं मानते हैं । अब आप सब मिलकर समझाईए । मैं तो पदवी देने के लिए तैयार ही हूं। मुझे लगता हैं कि आज आपकी प्रबल भावना और विनंती के सामने उन्हें झुकना पड़ेगा । बुलाओ पंन्यासजी म. को । पूज्य श्री की आज्ञा होते ही पंन्यासजी म. नत मस्तक उनके चरणोंमें उपस्थित हुए । सबने जोरदार विनंती की और अंतमें पूज्य आचार्यश्रीने ही पदवी ग्रहण के लिए स्पष्ट आज्ञा फरमाकर पंन्यासजी के मस्तक पर वासक्षेप किया । उपस्थित जन समुदायने उल्लासपूर्ण हृदय से जिनशासन का जयनाद गजाया । - मृगशीर्ष शुक्ला तीज का शुभ दिन नक्की हुआ । सूरि-पदप्रदान और संघमाला साथमें ही थे । सब भक्तजन तो आयोजन की शीघ्र तैयारी करनेमें लग गये । यात्रा - संघ का भद्रेश्वर तीर्थमें शुभप्रवेश हुआ । तीर्थमाला और ३७० WWWWWW कहे कलापूर्णसूरि- ४

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