Book Title: Jivvichar
Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org [ ४९ ] भावार्थ-संसार का आदि नहीं है, न अन्त है; अनंतबार जीव मर चुके हैं और आगे मरेंगे सुदैव से यदि उन्हें धर्म की प्राप्ति हुई तो जन्म मरण से छुटकारा होगा । "अब योनिद्वार कहते हैं ।" तह चउरासी लक्खा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संखा जोणीण होइ जीवाण । पुढवाईण चउपह पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥४५॥ (जीवाणं) जीवों की (जोणीण) योनियों की ( संखा) संख्या (चउरासी लक्खा) चौरासी लाख (होइ ) है । ( पुढवाई चउरहं ) पृथ्वीकाय आदि चार की प्रत्येक की योनि - संख्या ( सत्त सत्तेव ) सात सात लाख है || ४५ ॥ भावार्थ - जीवों की चौरासी लाख योनियाँ हैं, यह बात प्रसिद्ध है । उसको इस प्रकार समझना चाहिये :- पृथ्वीकाय की सात लाख, अप्काय की सात लाख, तेजःकाय की सात लाख और वायुकाय की सात लाख योनियाँ हैं; सबको मिलाकर अट्ठाईस लाख हुई । For Private And Personal Use Only

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