Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 29
________________ प्रकरण बीजुं. on मालालCHIRAINERAL SunHATTISGARY methurmen - HimHE र पछी मित्रगणथी भूषित राजपुत्र कोई पाठशाळा अथवा विद्यालयमां दाखल थयो, अने त्यां पंडिते तेने बधी विद्याओ भणावी; ए रीते ते बहु मोटो पंडित अथवा विद्वान थई गयो. १. तेणे गुरुप्रत्ये जे प्रीति, सेवा, उपासना अने चतुराई प्रगट करी, तेथी तेने बधी विद्याओ याद थई गई; अर्थात् जे रीते भूलेली विद्या याद थाय छे, ते रीते तेने सहेलाईथी बधी विद्या आवडी; कारण के गुरुनी शिष्यनी तरफ प्रीतिन बधी इच्छाओ पूरी करनार होय छ, अर्थात् राजपूत्रे विनयपूर्वक गुरुनी सेवा करी अने तेनी आज्ञानुसार बघां काम करूं, तेथी गुरुए प्रसन्न थईने प्रीतिपूर्वक तेने भणाव्यो अने बधी विद्याओमां प्रवीण करी दीधो. २. आ संसारमा जेटला पंडित छे, ते सर्व जीवंधरथी हेठ छे, अर्थात जीवंधर अद्वितीय विद्वान छे, एवो निश्चय करीने आचार्य महाराज तेनापर पोतेज बहु प्रीति करवा लाग्या. ३. जो के मनुष्योने पोतार्नु काम गमे तेवू खोटुं होय पण सफळ थवाथी सारुं लागे छे, तो पछी सारं काम केम सारु लागे नहि ? अने विद्यादानथी वधीने उत्तम कामज क्युं छे ? ते तो सारुं लागवुज जोईए. ४.

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