Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - दस वृक्षों का वर्णन - चित्रांगा नामक वृक्ष ३०५ तीक्ष्ण होकर मंद है, उनका आताप तीव्र नहीं है, जैसे पर्वत के शिखर एक स्थान पर रहते हैं वैसे ही ये अपने स्थान पर स्थित होते हैं, एक दूसरे से मिश्रित अपने प्रकाश द्वारा ये अपने प्रदेश में रहे हुए पदार्थों को सब तरफ से प्रकाशित करते हैं, उद्योतित करते हैं, प्रभासित करते हैं। ये वृक्ष कुश विकुश आदि से रहित मूल वाले हैं यावत् शोभा से अतीव अतीव शोभायमान है। . ६.चित्रांगा नामक वृक्ष एगूरुयदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ बहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से पेच्छाघरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदाममालुज्जले भासंतमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए विरल्लि विचित्तमल्ल सिरिदाममल्लसिरिसमुदयप्पगब्भे गंथिम वेढिमपूरिमसंघाइमेण मल्लेण. छेयसिप्पियं विभागरइएण सव्वओ चेव समणुबद्धे पविरललंबंत विप्पइटेहिं पंचवण्णेहिं कुसुमदामेहिं सोहमाणेहिं सोहमाणे वणमाल(क)यग्गए चेव दिप्पमाणे तहेव ते चित्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससा परिणयाए मल्लविहीए उववेया कुसविकुसविसुद्ध रुक्खमूला जाव चिटुंति ६॥ - कठिन शब्दार्थ - चित्तंगा - चित्रांगा-विविध प्रकार के फूल देने वाले, पेच्छाघरे - प्रेक्षा घर (नाट्यशाला), वरकुसुमदाममालुज्जले - वरकुसुमदाममालोज्वलं-श्रेष्ठ फूलों की मालाओं से उज्ज्वल, भासंतमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलिए - भासमानमुक्त पुष्पपुंजोपचारकलितम्-विकसित-प्रकाशित-बिखरे हुए पुष्प पुंजों से सुंदर, विरल्लियविचित्तमल्लसिरिदामल्लसिरिसमुदयप्पगब्भे- विरल्लित विचित्र माल्य श्रीदाम माल्य श्री समुदाय प्रगल्भं-विरल (पृथक् पृथक् रूप से स्थापित हुई) एवं विविध प्रकार की मालाओं की शोभा से अतीव मनमोहक, गंथिम - ग्रथित-गूंथी हुई, वेढिम - वेष्टित, पूरिम - पूरित, संघाइमेण - संघातिम-संघातित कर-मिलाकर गूंथी हुई, छेयसिप्पियं - छेक शिल्पिनां-परम दक्ष (चतुर) कलाकारों द्वारा, पविरललंबंत विप्पइटेहिं - प्रविरललम्बमान विप्रकृष्टैः-अलग अलग रूप से दूर दूर पर लटकती हुई। भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण! उस एकोरुक द्वीप में स्थान स्थान पर बहुत से चित्रांगा नाम के वृक्ष हैं। जैसे कोई प्रेक्षाघर (नाट्यशाला) विविध प्रकार के चित्रों से चित्रित, रम्य, श्रेष्ठ फूलों की मालाओं से उज्ज्वल, विकसित-प्रकाशित-बिखरे हुए पुष्पपुंजों से सुंदर, विरल-पृथक् पृथक् रूप से स्थापित हुई एवं विविध प्रकार की गूंथी हुई मालाओं की शोभा की अधिकता से अतीव मनमोहक होता है ग्रथित-वेष्टित-पूरित-संघातिम मालाएं जो चतुर कलाकारों द्वारा गूंथी हुई हैं उन्हें बड़ी ही चतुराई के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370