Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna
Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri
Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti

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Page 228
________________ जिनागम के अनमोल रत्न ] (क्रिया की निन्दा) करनीकी धरनीमैं महा मोह राजा बसै, करनी अग्यान भाव किसकी पुरी है । करनी करम काया पुग्गलकी प्रतिछाया, करनी प्रगट माया मिसरीकी छुरी है ।। करनीके जाल मैं उरझि रह्यौ चिदानंद, करनीकी वोट ग्यानभान दुति दुरी है । आचारज कहै करनीसौं विवहारी जीव, करनी सदैव निहचै सुरूप बुरी है। 197 ॥ पुन: (चौपाई ) * मैं त्रिकाल करनीसौं न्यारा, चिदविलास पद जग उजयारा । राग विरोध मोह मम नाही, मेरौ अवलंबन मुझमांही ॥। १०० ।। पुन: (सवैया इकतीसा ) जबहीतैं चेतन विभावसौं उलटि आपु, समै पाइ अपनी सुभाउ गहि लीनौ है । तबहीतैं जो जो लेने जोग सो सो सब लीनौ, जो जो त्यागजोग सो सो सब छांड़ि दीनौ है ।। लैबेकौं न रही ठौर त्यागिवेकौं नांहि और, बाकी कहा उबरयौ जु कारजु नवीनौ है । संग त्यागि अंग त्यागि वचन तरंग त्यागि, [227 मन त्यागि बुद्धि त्यागि आपा सुद्ध कीनौ है ।। 109 ।।

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