Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 62
________________ जिनके विचारणीय प्रसंग साधुस्वस्तिनित्याप्रकरानकेवलोषाः, म्फुग्न्मनः पर्यय मुखबोधाः । दिव्यावधिमानवनप्रवोधाः, म्पम्ति क्रियामु परमर्पयो नः ।। कोप्ठम्य धान्यपममेकवीज, मभिन्नमंबोतृपदानुमारि । चतुर्विध बुद्धिबलंदधाना, म्बम्तिक्रियामु परमर्पयो नः ॥ इत्यादि । ऊपर के समस्त प्रमग में यह भली भानि सिद्ध है कि अगहन आदि पागे 'म्बम्ति' रूप है और जमा कि पहिले लिखा जा चुका है यह स्वस्ति उम 'म्बग्निक का ही रूप है, जिमे आकार मे स्थापित किया जाता है। यत.'स्वस्ति एप स्वस्तिक।' जैन धर्म के अन्पो में मगलो का चलन छह प्रकार में माना गया है। द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव के अनुसार कर्ता [यथाशक्ति] इन छहो मे किमी को भी अपनाकर कार्य प्रारम्भ कर लेना है। * और म्वम्निक ये दोनों स्थापना मगन में आते है और ये दोनो ही बृहन्यक्ति के लघु (बीजरूप) है। मगल के छह प्रकार इन भानि है णामणिट्ठावणा दव्ववेत्ताणि कालभावा य । इयछम्मेय भणिय, मगलमाणदमजणण ।' -निलीयपण्णनि ११ नाममगल, स्थापनामंगल, द्रव्यमंगल, क्षेत्र मगल. कालमगल और भावमंगल ये मगल के छह प्रकार है। जमे शान्ति प्राप्त्यर्ष मुखदाग, भावो द्वारा मंगलाचरण, किए जाते हैं मे ही काय द्वारा स्वस्तिक-रचना-प मगन किया जाता है। यह तो पूर्ण निर्विवाद है कि-- 'मगल कीग्दे पारडकजविग्यपरकम्मविणामणछ ।' -कसाय पाहुए । 'सविपणंदावतयपमुहा० ।' -नि०प०१७ प्रारम्भकार्यों में विघ्न निवारण के लिए मंगल किया जाना है। या स्वस्तिक, नवावर्त प्रमुन कार्य किए जाने हैं। भरत जैसे चक्रवर्ती ने भी

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