Book Title: Jan Jan Ka Jain Vastusara
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 12
________________ रचना प्राकृत भाषा में की है। अन्य अनेक प्राचीन ग्रंथों के आधार पर गहन अध्ययन के बाद इस ग्रंथ को, जैन-जन ही नहीं, जन-सामान्य पर भी उपकार करते हुए इस महामना लेखक द्वारा सदा काल के लिये यह उपयोगी ग्रंथ निर्मित किया गया। इस ग्रंथ की हिन्दी • गुजराती आवृत्तियाँ भी अनुपलब्ध हो गईं। वर्तमान युग में इसकी उपयोगिता हमारे क्रान्तदर्शी आचार्य श्री जयन्तसेनसूरीश्वरजी ("मधुकर") की दृष्टि में दिखाई दी। उन्होंने लोक संग्रह-लोकोपकार की महत्ती भावना से इसके पुन: प्रकाशन की प्रेरणा देकर राज-राजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट द्वारा यह ग्रंथ वि.सं. 2046 (ई.सन् 1989) में वास्तु सार प्रकरण' के नाम से पुन: प्रकाशित करवाया। निजानुभव एवं वास्तु - गुरुजनों का उपकार : प्रस्तुत प्रकाशन के कुछ समय पश्चात् पूज्य आचार्यश्री का बेंगलोर में पधारना हुआ। उन दिनों अनेक बाह्य संघर्षों एवं प्रतिकूलताओं के बीच से भी सद्गुरुकृपा से चल रही हमारी अंतर साधना एवं साहित्य-संगीत सृजना के बीच एक सांकेतिक सानंदाश्वर्यवत् पूज्य आचार्यश्री ने हमें यह उपकारक ग्रंथ प्रदान किया। तब हमने आपके द्वारा लिखित “ॐ नमो अरिहंताणं' एवं "जय जिनराज प्रभो" आदि कई पद स्वरस्थ कर रिकार्ड किये थे और दूसरी ओर से हमारे अपने 'अनंत' बिल्डिंग के वास्तु-दोषों के दुष्परिणामों से हम गुज़र रहे थे। इस पश्चाद्भूमि में संप्राप्त, ठीक समय पर संप्राप्त, इस ग्रंथ के अध्ययन ने गृहस्थ-श्रावक के रुप में हमारे उपर्युक्त स्थान के निवास की क्षतियाँ दीखला दीं, हमारे अवरुद्ध विकास और 'सतत पुरुषार्थ के होते हुए भी हो रहे हमारे अनेक नुकसानों की ओर स्पष्ट रुप से इंगित किया और हम स्तम्भित से रह गये। इस एक ग्रंथ के प्रथम अध्ययन ने हमारे खोज-द्वार को खोल दिया। प्राचीन-अर्वाचीन अनेक भाषी वास्तुग्रंथों का हमारा अध्ययन और प्रयोग-चिंतन चला। अनेक वास्तु-विद्वानों के सम्पर्क में हम आये, अनेक वास्तु-सम्मेलनों, परिसंवादों में हम पहुँचे और इन सभी प्रयासों एवं कष्टप्रद स्वगृह के वास्तुदोषों के दर्शनों से इस उपकारक ग्रंथ की प्रामाणिकता और सार्थकता सिद्ध हुई। फिर तो स्वयं पूज्य आचार्यश्री जयंतसेनसूरीश्वरजी भी हमारे उक्त वास्तुदोष-पूर्ण स्वगृह निवास पर कृपाकर पदार्पण करने पधारे और ग्रंथनिदर्शित वास्तुदोषों की प्रायोगिक पुष्टि की। उनके पश्चात् दक्षिण भारत के वर्तमान वास्तुविद् श्री गौरु तिरुपति रेड्डी, कि जिनके साथ अनेक स्थानों पर प्रत्यक्ष वास्तुनिरीक्षण पर जाने का प्रायोगिक शिक्षा लाभ हमें मिला, हमारे उक्त निवास पर आकर पूज्य आचार्यजी कथित और स्वयं दर्शित वास्तुदोषों की पुष्टि कर गये। जन-जन का जैनवास्तुसार G

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