Book Title: Jain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Author(s): Kameshwar Prasad
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 221
________________ भाव को प्राप्त हो जाता है। अतः साधक के लिए आवश्यक है कि वह अपनी अन्तरात्मा को शरीर से पृथक् अनुभव करने का अभ् कर हुए उसे ही चिन्मात्र विशुद्ध और अमृतमय पुरुष समझे। 'यमराज द्वारा कही हुई इस विद्या और सम्पूर्ण योग विधि को प्राप्त कर नचिकेता ब्रह्म भाव को पाकर धर्माधर्म-: - शून्य और अमर हो गया। दूसरा भी जो कोई अध्यात्म योग को इस प्रकार जानेगा वह भी वैसा ही हो जाएगा। बस यही शास्त्र का उपदेश है, इससे परे कुछ भी नहीं है। इस प्रकार इस कठोपनिषद में यमराज और नचिकेता के कथोपकथन द्वारा ब्रह्मविद्या का अत्यन्त सरल एवं रोचक वर्णन हुआ है। इसकी वर्णन शैली बड़ी ही सुबोध और प्रभावोत्पादक है। अन्य उपनिषदों की तरह इसमें जहां तत्व- ज्ञान का गंभीर विवेचन है वहां नचिकेता का चरित्र पाठकों के सामने एक अनुपम आदर्श उपस्थित करता है योग की साधना विधि का जैसा वर्णन सबसे पहले इस उपनिषद में हुआ है, वैसा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। इस उपनिषद के अनेक मंत्रों हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International - वह का कहीं शब्दतः और कहीं अर्थतः उल्लेख श्री मद्भगवद्गीता में हुआ है। इसमें वर्णित शरीर रूपी रथ की परिकल्पना परवर्ती अनेक धर्म-ग्रन्थों में ज्यों की त्यों ग्रहण कर ली गई है। श्रीमद्भगवद्गीता आदि धर्म शास्त्रों में इस संसार का अश्वत्थ वृक्ष के रूप में जो उल्लेख हुआ है, भी यहीं से लिया गया है। इससे स्पष्ट है कि प्रस्तुत उपनिषद में मानव-आत्म-कल्याण हेतु जिन साधन प्रणालियों का विवेचन हुआ है, यदि मनुष्य उन सबको विवेक, ज्ञान-सम्पन्न हो ग्रहण कर तदनुकूल आचरण करे तो उससे उसका आत्म-विकास अवश्य संभव हो सकता है। एक बारस्वामी विवेकानन्द नेअपने एक शिष्य से इस उपनिषद की प्रशंसा करते हुए कहा था कि 'उपनिषदों में ऐसा सुन्दर ग्रन्थ और कोई नहीं ।' मैं चाहता हूं, तू इसे कण्ठस्थ कर ले। नचिकेता के समान श्रद्धा, साहस, विचार और वैराग्य अपने जीवन में लाने की पेश कर केवल पढ़ने से क्या होगा ?" "विवेकानन्द साहित्य षष्ठ खण्ड ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः -सह शिक्षक, श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता For Private & Personal Use Only - अध्यापक खण्ड / २४ www.jainelibrary.org

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