Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ (२२) कञ्चन-कोमलहृदया कञ्चन-दुखी है बहुत दुखी है। उसे * पना जीवनतक भी भारसा प्रतीति होता है। उसे आशा नहीं कि अब कभी मुझे प्रियतमके साथ सुखसंभाषणका अवसर मिलेगा। वह मारे लज्जाके अपनी मनोवेदनाओंको दूसरोंपर भी जाहिर नहीं कर सकती। उसे इस वातका अधिकार भी तो नहीं है । कञ्चन ! तू अभागिनी है । तेरा पापकर्म बहुत तीव्र है । इसी लिए तेरे भाग्यमें सुख नहीं । तुझे आजतक अपने प्रियतमके साथ संभाषण करनेका, सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ। अपने कियेका फल भोगना यही अब एक मात्र तेरे लिए शान्तिका उपाय हैं । • . , एक दिन कञ्चन बैठी हुई थी कि मोतीलाल किसी कामके लिए उसकी कोठडीमें आया । कन्चनने उठकर साहस पूर्वक उसका हाथ पकड लिया और वह कहने लगी कि प्राणनाथ ! मुझ अभागिनी पर आप किस लिए नाराज है ? मैने आपका ऐसा कौनसा भारी अपराध किया है जिससे मै आपकी कृपापानी आजतक नहीं हुई है. मुझे समझाइये । मुझे दुःख देखते देखते वर्षके वर्ष बीत गयेपर आपने मेरे दुःखकी कुछ भी बात नहीं पूछी बतलाइये तो पतिको छोड़कर स्त्रीका और कौन आधार हो सकता है। वह किसके पास जाकर अपनी दुःख कहानी सुना सकती है? मोतीलाल-हाय छोड़ो । मुझे कामकी जरदी है। कञ्चन-आप तो जरासी देरके लिए ही इतनी उतावल करने लग गये ? फिर मेरी हालत तो देखिये कि मै दिनरात चिन्ताकी ज्वालामें नली जाती हूं, उसकी भी आपको कुछ खबर है ? मेरी वातोंका जबाब तो दीजिए कि आप मुझे क्यो नहीं चाहते ? - विना कुछ

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115