Book Title: Jain Tattvadarsha Uttararddha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 12
________________ जिज्ञासा जन्मी छे, विद्वानोने खातरी थई छे के विश्वमां शांति पाथरवामां जैन धर्मना सिद्धान्तो ज मोटो फाळो आपी शके तेम छे. ए बातथी प्रेराई, स्वर्गस्थ गुरुदेव श्रीमद् विजयवल्लमसूरिजीनी सूचना थतां ज श्री आत्मानंद जैन सभाए पोतानी पासे फंडनी संगीनता नहोती छतां पांचमी आवृत्ति बे भागमां तैयार करवानुं कार्य हाथ घयुं छे. काम जल्दी पूरुं करावी आचार्यश्रीनी हाजरीमां ज ए बहार पडे एवी हार्दिक इच्छाथी जयपुर अने भावनगरना प्रेसोमां ए सोंपायेल. भाविने ए वात मंजूर न होवाथी आचार्यश्री प्रकाशन जोवा आजे हैयात नथी, छतां तेओनीना अंतरमां आ प्रन्थना प्रचार माटे केवी तमन्ना प्रवर्तती हती ए पोताना स्वर्गगमन पूर्वेना रविवारे एनुं अंग्रेजी करावी, आत्मानंद शताब्दि फंड द्वारा प्रगट करवानो ने ठराव ट्रस्ट बोर्डमा कराव्यो दतो, ए उपरथी जणाई आवे छे. अंतमां जणाववानुं एटलुं ज के युगना एंधाण पारखी जैन समाज साहित्य प्रचार अंगे खास लक्ष्य आपे, आ ग्रन्थने प्रत्येक घर एक अणमूला अलङ्काररूपे होंशथी संघरे अने वारसा - रूपे भावि प्रजाने एवं दान करे; अर्थात् वांचे अने पंचावे. एथी आत्मकल्याण सधाशे अने धर्मप्रभावना थशे. सुज्ञेषु कि ? बहुना वैशाख कृष्ण तृतीया चीर संवत् २४८ १ प्रेमकुटिर - खंभात मोहनलाल दीपचंद चोकसी ओ. मंत्री श्रीवल्लभसूरि स्मारकनिधि

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