Book Title: Jain Tattva Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-207 जैन-तत्त्वमीमांसा-59 पूज्यपाद आदि कुछ आचार्यों ने 'गुणाणां समूहो दव्वो' अथवा 'गुणसमुदायो द्रव्यमिति' कहकर के द्रव्य को गुणों का संघात माना है। जब द्रव्य और गुण की अलग-अलग सत्ता ही मान्य नहीं है, तो वहाँ उनके तादात्म्य के - अतिरिक्त अन्य कोई सम्बन्ध मानने का प्रश्न ही नहीं उठता है। यह दष्टिकोण बौद्ध-अवधारणा से प्रभावित है। यह संघातवाद का ही अन्य रूप है, जबकि जैन-परम्परा संघातवाद को स्वीकार नहीं करती है। वस्तुतः, द्रव्य के साथ गुण और पर्याय के सम्बन्ध को लेकर तत्त्वार्थसूत्रकार ने जो द्रव्य की परिभाषा दी है, वही अधिक उचित जान पड़ती है। तत्त्वार्थसूत्रकार के अनुसार, जो गुण और पर्यायों से युक्त है, वही द्रव्य है। वैचारिक-स्तर पर तो गुण द्रव्य से भिन्न है और उस दृष्टि से उनमें आश्रय-आश्रयी-भाव भी देखा जाता है, किन्तु अस्तित्व के स्तर पर द्रव्य और गुण एक-दूसरे से पृथक् (विविक्त) सत्ताएँ नहीं हैं, अतः उनमें तादात्म्य भी है। इस प्रकार; गुण और द्रव्य में कथंचित् तादात्म्य-सम्बन्ध / है। डॉ. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य जैन-दर्शन (पृ. 144) में लिखते हैं कि गुण से द्रव्य को पृथक नहीं किया जा सकता, इसलिए वे द्रव्य से अभिन्न हैं, किन्तु प्रयोजन आदि भेद से उसका विभिन्न रूप से निरूपण किया जा सकता है, अतः वे भिन्न भी हैं। "एक ही पुद्गल-परमाणु में युगपद् रूप, रस, गंध आदि अनेक गुण रहते हैं। अनुभूति के स्तर पर रूप, रस, गंध आदि पृथक्-पृथक् गुण हैं, अतः वैचारिक-स्तर पर एक गुण न केवल दूसरे गुण से भिन्न है, अपितु उस स्तर पर उन्हें द्रव्य से भी भिन्न कल्पित किया जा सकता है। पुनः, गुण अपनी पूर्वपर्याय को छोड़कर उत्तरपर्याय को धारण करता है और इस प्रकार वह परिवर्तित होता रहता है, किन्तु उसमें यह पर्याय-परिवर्तन द्रव्य से भिन्न होकर नहीं होता। पर्यायों में होने वाले परिवर्तन वस्तुतः द्रव्य के ही परिवर्तन हैं। पर्याय और गुणों में होने वाले परिवर्तनों के बीच जो एक पुद्गल-परमाणु के रूप, रस, गंध और स्पर्श के गुण बदलते रहते हैं, गुणों के इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी पर्याय भी बदलती रहती है, किन्तु इन परिवर्तित होने वाले गुणों और पर्यायों के बीच भी एक तत्त्व है, जो इन परिवर्तनों के बीच भी बना रहता है, वही द्रव्य है। प्रत्येक द्रव्य में प्रति समय स्वाभाविक गुण कृत और

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152