Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 434
________________ ( २०४ ) मेना पूरी हुई थारी प्राश जो नन्दीश्वर ढोकियो । सारी गोठया को अविचल राज, जो नन्दीश्वर ढोकियो || || यो व्रत० ॥ २६ ॥ गावा वाल्या ही सुखपाय, जो या हिल मिल गाइये । सुनवा वाल्या थे ही सुखपाय, जासे ध्यान लगाइये || यो व्रत ||२७|| लाडू की विनती पच परमगुरु बन्दस्या,सुमरो शारद माय, जिनेश्वर लाडूगायस्यांजी ।।१।। गुण गाऊ जी श्रावक तथा क्रिपा त्रेपनसार, जिनेश्वर लाडू ॥ २॥ जयपुर नगर सुहावनो बसे जहां महाजन लोग, जिनेश्वर लाडू० ॥ ३ ॥ प्राठ मूलगुण गेहुडा ' जी समकित छाज पिछाट जिनेश्वर लाडू ॥४॥ सात विसन रज दूर करि, सुवरण थाल विणाय जिनेश्वर लाडू || ५|| फोर' खाले' भेयस्यो, प्रासुक पाणीजी घोय ॥ जिने ॥६॥ बासकी छवली छापस्या, तप तावडिया सुखाय ॥ जिने ॥७॥ दो प्रकार को घटुल्यो, करुणा पीसणहार ॥ जिने ||६|| घारह व्रत कर छानस्या, त्रेपन क्रियाजी पाल ॥ जिने ॥६॥ रतन कचोले समेटस्या, वाईस परीषह छान ॥ जिने० ॥ मन्दीश्वरी चुल्हो करयो प्रातम करो कढाहि ॥ जिने० ॥ बुद्धि विवेक चाटू करो, करुणा सेकनहार ॥ जिने० ॥ ईन्धन चार कषाय को, ज्ञान अगनि परजाल || जिने० ॥ परशन ज्ञान कर काठडो, करुणा मेलनहार ॥ जिने० ॥ धीरत घालो गाय को, ज्यो भोजन पर खाड ॥ जिने० ।। १० ॥ ११ ॥ १२ ॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ।। १ गेहूं, २. छाजले से पिछाट कर, ३ नवीन ४. मटकी मा मिट्टी का बरतन ५ छोटी चक्की ६. सेकने की कढाई,

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