Book Title: Jain Siddhant Kaumudi
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 13
________________ 8888888888888888888888 88888888888888888888888888888888 इनके अतिरिक्त प्राचीन रचना है श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र, जो कि उमास्वाति द्वारा संस्कृत भाषा में प्रणीत है। श्वेताम्बरदिगम्बर उभय विध सम्प्रदायों में समान रूप से यह ग्रन्थ आहत है। इस ग्रन्थ का समय १-८५ ई. स्वीकार किया गया है। जैन तर्कवार्तिक शान्याचार्यकृत, नेमिचन्द्र कृत द्रव्य संग्रह मल्लिषेण कृत-स्याद्वाद मंजरी, सिद्धसेन दिवाकर कृत न्यायावतार, अनन्तवीर्यकृत परीक्षामुखसूत्र, लघुवृत्ति, प्रभाचन्द्र का प्रमेयकमल मार्तण्ड आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र, देवसूरिकृत प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार आदि महनीय जैन दार्शनिक ग्रन्थों के अनुशीलन से जैन दर्शन के सिद्धान्तों को आत्मसात् करके स्वनाम धन्य विद्वमूर्धन्य शास्त्रविशारद प्रतिष्ठा शिरोमणि आचार्य श्री सुशील सूरीश्वर जी महाराज साहब ने जैन सिद्धान्त कौमुदी की रचना की है। प्रस्तुत जैन सिद्धान्त कौमुदी का प्रारम्भ मंगलाचरण से है जिसमें पाँच श्लोक है। पदार्थ विवेचन से नाना विषयों का क्रमिक विवेचन किया गया है। सम्पूर्ण जैनदर्शन सिद्धान्त का तत्त्वत: समावेश करने वाले इस ग्रन्थ में मंगलाचरण सहित ५+७१३ =७१८ श्लोक हैं। 8888888888888888888888888888888888888888888 38888888888888888888888888888888 @ । दस ।

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