Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 10
________________ मोक्षलक्ष्मीका अपूर्व लाभ उठाकर सदाके लिये लोक शिखरपर विराजमान हो अमरपदको प्राप्त होते हैं । ऊपर लिखे हुए सब राग अलापनेका सारांश यह हैं, कि इस संसारमें भ्रमण करते करते यह मनुष्य जन्म बड़ी दुर्लभतासे मिला है । इसलिये इसको व्यर्थ न खोकर हमारा कर्तव्य यह है कि यह मनुष्यभव संसार - समुद्रका किनारा है, यदि हम प्रयत्नशील होकर इस संसार समुद्रसे पार होना चाहें, तो थोड़े से परिश्रम से हम अपने अभीष्ट फलको प्राप्त कर सकते हैं । यदि ऐसा मौका पाकर भी हम इस ओर लक्ष्य न देंगे तो सम्भव है, कि फिर हम इस अथाह समुद्रके मध्य प्रवाहमें पड़कर डांवाडोल हो जाँय । संसारमें समस्तं प्राणी सदा यह चाहते रहते हैं, कि हमको किसी प्रकार सुखकी प्राप्ति होवे, तथा सदा उसके प्राप्त करनेका ही उपाय करते रहते हैं । ऐसा कोईभी प्राणी न होगा जो अपनेको दुःख चाहता हो, इनकी जितनी भी इच्छा व प्रयत्न होते हैं, वे सब एक सुखकी प्राप्तिके लिये ही होते हैं । परन्तु ऐसा होने परभी जिस किसी से भी पूँछा जाय, हरएकसे यही उत्तर मिलेगा. कि संसारमें मेरे समान शायद ही कोई दूसरा दुःखी हो, संसारमें कोई भी ऐसा नहीं होगा, जिसे सब तरहसे सुख हो, इसका मूल कारण यह है, कि संसारमें दर असल सुख है ही नहीं । सुख वहीं है जहाँपर असुख कहिये दुःख यानी आकुलता नहीं है । संसारमें जिसको सुख मान रक्खा है, वह सब आकुलताओंसे घिरा हुआ है । सच्चा सुख मोक्ष होनेपर आत्मासे कर्मबन्धनके छूटनेपर सर्वतन्त्र स्वतन्त्र होने में है । क्योंकि जबतक यह जीव कर्मोंसे जकड़ा हुआ है तबतक पराधीन है और " पराधीन सपने सुख नाहीं " जबतक पराधीनता छोड़ स्वाधीनता आत्माका असली स्वभाव प्राप्त नहीं होता, तबतक सुख होवे तो, 'होवे कहाँसे ? इसलिये सच्चा सुख मोक्षमें है, और उसके होनेका उपाय पूर्वाचार्यों ने यों बतलाया है कि “ सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्गः ११ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इन तीनोंकी एकता ही मोक्षका मार्ग है । परन्तु इसका भी जानना जैनसिद्धान्तके रहस्य जानने के .

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