Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 19
________________ श्री जैन शासन संस्था ११] मिल्कियत किसी के भी अधिकार में हो तो वहां जैन शासन है और कोई भी उसकी करता हो तो वह वह सब जैन शासन को वस्तु ( सम्पत्ति ) है और रक्षा प्रबन्ध शास्त्राज्ञानुसार धार्मिक उपयोग में श्री जैन संघ की तरफ से समझना चाहिये । २. जिन आज्ञा के आधीन रहने वाला एक भी श्री संघ का व्यक्ति हो तो उसको वहां का श्री संघ गिना जा सकता है और वह वहां का जैन शासन से सम्बन्धित संचालन श्री संघ की तरफ से कर सकता है । इतर मार्गानुसारी व्यक्ति भी उसका संचालन अनिवार्य संयोग में कर सकता है । ३. मार्गानुसारी यानि भारतीय आर्य अहिंसक चार पुरुषार्थं की संस्कृति के प्रति वफादार व्यक्ति, जहां जैन संघ न हो या अल्पसंख्यक या अल्पशक्ति सम्पन्न हो तो पास का श्री संघ उसका सहायक हो सकता है अथवा वह संघ सब संचालन कर सकता है, क्योंकि संचालन रक्षा करने का उनका कर्त्तव्य है । ४. स्थानिक श्री संघ:- स्थानिक श्री जैन समाज के किसी भी द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव का रक्षण, संवर्द्धन संचालन आदि स्थानीय श्री संघ के आधीन है । ५. जैन तीर्थ, मंदिर, उपाश्रय, ज्ञानभंडार, पौषधशाला, धर्मशाला, परम्परागत धर्मश्रद्धा, धार्मिक आचार और उसकी मर्यादा में आये हुए साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका आदि का रक्षण सम्मान, प्रतिष्ठा रक्षा, शासन भक्ति, प्रभावना आदि का समावेश होता है एवं सकल शासन और सकल संघ की भक्ति सच्चाई को रक्षा | उत्सव, साधर्मिक वात्सल्य, नवकारसी जीव दया, अनुकम्पा दूसरों के साथ के धार्मिक हित सम्बन्धों की रक्षा और स्थानीय जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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