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जैनसाहित्य और इतिहास
छ-यापनीयसंघ दिगम्बर श्वेताम्बरोंके अतिरिक्त एक तीसरा ही जैन-सम्प्रदाय था । सिद्धान्त-दृष्टि से यह श्वेताम्बर सम्प्रदायसे अधिक मिलता जुलता था, परन्तु इस संघके अनुयायी नग्न मूर्तियोंकी ही स्थापना-पूजा किया करते थे। यह संघ अब लुप्त हो गया है परन्तु दक्षिणमें अनेक स्थानोंमें अब भी इस संघकी नग्न मूर्तियाँ मिलती हैं । बेलगाँवके ' दोड्डवस्ति' नामक जैन-मन्दिरमें नेमिनाथ तीर्थकरकी एक मूर्ति है, जिसे यापनीय संघके एक श्रावकने श० सं० ९३५ में प्रतिष्ठित कराई थी। यह मूर्ति नग्न है और इसे अब दिगम्बर श्रावक ही पूजते हैं । इससे भी यही अनुमान होता है कि पहले श्वेताम्बर सम्प्रदायकी प्रतिमायें भी नम बनाई जाती होंगी। जैन साधुओंके लिए वस्त्र-धारणका सर्वथा निषेध यापनीय सम्प्रदायमें भी नहीं था और श्वेताम्बर सम्प्रदायके समान स्त्री मुक्ति और केवलि-भुक्तिको भी वह मानता था।
१४-अकसर दिगम्बरी भाइयोंकी ओरसे यह अक्षेप किया जाता है कि श्वेताम्बरी भाई दिगम्बरी मन्दिरों और प्रतिमाओंपर अधिकार कर लिया करते हैं;
और यही आक्षेप श्वेताम्बरियोंकी ओरसे दिगम्बरियोंपर किया जाता है। यह आक्षेप बहुत अंशोंमें सच्चा है; परन्तु इस आक्षेपके पात्र दोनों ही सम्प्रदायवाले हैं । इस विषयमें कोई भी सम्प्रदाय निर्दोष नहीं है । सम्प्रदाय-मोह चीज ही ऐसी है कि वह भिन्न सम्प्रदायवालोंके साथ उदारताका व्यवहार करनेमें संकुचित हुए बिना नहीं रह सकता । इसके सम्बन्धमें भी अनेक उदाहरण मिल सकते हैं
क-श्रद्धेय मुनि जिनविजयजीसे मालूम हुआ कि सुप्रसिद्ध तीर्थ रिखबदेवका मुख्य मन्दिर दिगम्बर सम्प्रदायका है; परन्तु उसपर अधिकार श्वेताम्बरी भाइयोंका है।
ख-रोशन मुहल्ला आगरेके सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर मन्दिर (चिन्तामणि पार्श्वनाथ) की मूलनायककी मूर्ति दिगम्बर सम्प्रदायकी है । (देखो जैनशासन वर्ष १)।
१५-जब कोई पूछता है कि अमुक तीर्थपर वास्तविक अधिकार किसका है, तो मैं कह दिया करता हूँ कि दोनोंका । दोनों से चाहे जो पीछेका हो पर उसका अधिकार पहलेवालेसे कम नहीं ठहराया जा सकता । बल्कि उसपर तो ऐसे जैनेतर लोगोंका भी अधिकार है जो जिनदेवपर श्रद्धा-भक्ति रखते हैं और उनका भक्तिभावसे-पूजन वन्दन करते हैं । जब दोनों ही सम्प्रदायवाले जिनदेवों