Book Title: Jain Ras Sangraha Part 01 Author(s): Sagarchandra Maharaj Publisher: Gokaldas Mangaldas Shah View full book textPage 4
________________ ॥ श्रीभ्रातृचन्द्रसूरीश्वरस्तुतिः ॥ श्रीपार्श्वचंद्रसूरीन्द्र नागपुरीन्द्र तपगण नभमणी, तस पट्टपरंपर गणधुरंधर हेमचंद्रमूरि गुणी । निग्रंथ गुरु तस पाटराजे आज गाजे मुनिवरा, भवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. १ छे शांत दांत महंत किरियापात्र समता सागरु, पंडितप्रवर विद्वान् बुद्धिनिधान विद्या आगरु । अघ ओघवारक महाप्रभावक धर्मधोरी धुरंधरा, भवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. २ छे भव्य आकृति धर्ममूर्ति प्रभुतुल्य मनोवृत्ति, तप तेज दीपे कदि न छीपे भाग्यनी चढती रती। वली शरद शशिसम सौम्यकांति शांतिवान शुभंकरा, भवि भक्तिभावे नमो निशिदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. ३ गुरु गच्छनायक ज्ञानदायक संघमां लायक मुदा, गत रागरोष न दोष जरिए तोष सुखदुःखमां सदा । छत्रीस गुणगण युक्त सूरीश्वर चरण गुणथी अलंकर्या, भवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. ४ जिण भाण अस्त थतां सूरीश्वर ज्ञानदीप प्रकाशता, मिथ्यांधकार विकार टाळी भविकजन प्रतिबोधता । शुभच्छंद सांकळचंद कहे पावनकरी भारतधरा, भवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. ५Page Navigation
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