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चरित आदि का एक साथ ज्ञान होता है। जैन रामायण में हेमचंद्र ने स्थानस्थान पर व्यावहारिक ज्ञानका उपदेश देकर इस कृति के महत्त्व को बढ़ा दिया है। धार्मिक दृष्टि से यह कितना उपयोगी है इसका प्रमाण त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रस्तावना में लिखे ये शब्द हैं- "इस ग्रंथ के मूल दस भाग हैं। इसमें सर्व सिद्धांतों का रहस्य छिपा है। अलग-अलग उपदेशों में नया स्वरुप, क्षेत्रसमास, जीवविचार, कर्मस्वरुप, आत्मा का अस्तित्व, वैराग्य, क्षणभंगुर जीवन एवं ज्ञान के सभी विषय सरल एवं आकर्षक भाषा में हेमचंद्र ने समन्वित किये हैं।"
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (जैन रामायण) में भक्ति एवं चरित्र का उत्कृष्ट समन्वय है अर्थात् इस में चरित्र की भी भक्ति की गई है। उनका आराध्य दर्शन व ज्ञान तो हैं ही, अलौकिक चरित्रों का वर्णन भी हेमचंद्र की कृतियों को अलंकृत करता रहा है। जैन रामायण की विशेषताओं पर मुनिराज श्री तरुणविजय जी ने लिखा है- “रामायण अद्भुत प्रेरणादायक एवं आदर्शभूत अद्वितीय ग्रंथरत्न है। मानव उसमें चित्रित उच्च आदर्श को दृष्टि में रखकर प्राप्त प्रेरणा को जीवन साकार बनाने के लिए ग्रहण करे तो उसका जीवन धन्य-धन्य और कृतकृत्य हुए बिना नहीं रहता।"
__ आगे लिखते हैं- "जीवन को कैसे जिया जाता है। राज्य वा कुटुम्ब का पालन पोषण कैसे होता है। मानव जीवन के एकमात्र ध्येय मोक्षप्राप्ति को अनासक्तभाव व त्यागभाव के लिये किस प्रकार पुरुषार्थ किया जाय, आदि अनेक भावी प्रश्नों का समाधान व मार्गदर्शन रामायण द्वारा मिलता है।" हिन्दुस्थान का धनाढ्य वर्ग है जैन समाज। आज इस वैज्ञानिक युग में बाह्य सुख को प्राप्त करने के अनेक साधन हैं। हम मौलिक रुप से समृद्ध हैं परन्तु आज हमारे पास आंतरिक शांति, श्रद्धा, सदभावना एवं आत्मिक बल की कमी है। उसकी प्राप्ति का एकमात्र साधन है रामायण। संकीर्ण विचारों के लोग जहां ब्राह्मणवाद की आलोचना करते हैं उनके लिए यह जैन रामायण रामबाण औषधि है। वे लोग इसे अपनी (जैनों की) रामायण समझकर सुनते हैं एवं धर्मलाभ प्राप्त करते हैं। जीवन के वास्तविक संस्कारों का शिक्षणालय हैरामायण की कथा। मुनि जी के अनुसार रामायण जिस तरह रामचंद्र भगवान के जीवन की आदर्श रीति. नीति और पद्धति का सच्चा ज्ञान देती है उसी प्रकार जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान करने में भी सहायता देती है। वे लिखते हैं- “अनेक संतों और पंडितों ने रामायण की रचना की है, इन सब में कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यकृत यह रामायण अनोखी छाप छोड़ जाती है। 39
आचार्य हेमचंद्र ने अनेक कृतियं की रचना की। विदेशी लेखकों के साथ-साथ भारतीय साहित्यविटोंने अनेक कृतियों पर टीकाएँ प्रस्तुत की है।
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