Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 213
________________ तृतीय भाग) (२११ । ने कहा-माताजी, मै तो आपकी लडकी हूँ।' फिर कहा-मां । अब किसी को कलक मत लगाना । सास की आँखो से आँसू झरने लगे। चारो ओर सती का जय-जयकार हुआ । उसकी खूब कोत्ति फैली । धन्य है प्रभावशाली सती सुभद्रा को ! जो स्त्री अपनी आपको निर्बल-अबला समझती है, वह कुछ भी नही कर सकती। शैलक ऋषि राज्य त्याग त्यागी बने, शैलक ऋषि सुकुमार , वर्षों पाला त्याग-तप, अन्त हुए बीमार । पाई फिर नरोिगता किया न किन्तु विहार, देख शिथिलता तज गया, सकल शिष्य-परिवार । गुरु-सेवा करता रहा, पंथक गुण की खान, देख चरित उसका, हुआ शैलक ऋपि को भान || सेलकपुर मे शैलक राजा राज्य करता था। उसकी रानी ज नाम पद्मावती और पुत्र का नाम मडूक था। उसके पाँचसौं त्रिी थे। पथक उन सब मे बडा था। वह बहुत बुद्धिशाली और विनयवान् था।

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