Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 129
________________ शैलेशी - सद्गुणो की प्रतिमूर्त दशा; मेरु पर्वत के समान निश्चलता । शैलेशीकरण - वृत्ति चंचलता को समाप्त करना । शौचधर्म - अन्तर - निर्मलता का प्रयत्न ; लोभ व तृष्णा से रहित सन्तोष-भाव ; दस धर्मो में एक । श्रद्धा - चित्त की निर्मलता का कारण ; अभिरुचि ; आत्ममूल्यो या आदर्श पुरुषो के प्रति निष्ठा । श्रमण - निष्पृह संयत साधक । श्रमण-धर्म-साधु का जीवन - अनुशासन ; ध्यान, स्वाध्याय आदि में प्रयत्न | श्रमणोपासक - श्रावक । श्रावक -- तत्त्व- श्रमण करके कल्याण-मार्ग का अनुसरण करने वाला गृहस्थ ; श्रवण, विवेक एवं क्रिया को चरितार्थ करने वाला व्यक्ति; अणुव्रती धर्मात्मा श्रावक - धर्म - गृहस्थ धर्म; अणुव्रत ; श्रावक का जीवनअनुशासन; दया, दान, भक्ति, विनय आदि में प्रयत्न । श्राविका - श्रावक-धर्म का अनुसरण करने वाली महिला । [ १२१ ]

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