Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 434
________________ 372...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन 6. तत्थावायं दुविहं, सपक्खपरपक्खओ य नायव्वं । दुविहं होइ सपक्खे, संजय तह संजईणं च ॥ संविग्गमसंविग्गा, संविग्गमणुण्ण एअरा चेव । असंविग्गावि दुविहा, तप्पक्खिअ एअरा चेव ।। (क) बृहत्कल्पभाष्य, 420-421 (ख) ओघनियुक्ति, 297-298 (ग) पंचवस्तुक, 407-408 (घ) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 204 7. परपक्खेवि अ दुविहं, माणुस तेरिच्छियं च नायव्वं । एक्किक्कंपि अ तिविहं, इत्थी पुरिसं नपुंसं च ॥ पुरिसावायं तिविहं, दंडिअ कोडुबिए अ पागइए । ते सोयऽसोयवाई, एमेव णपुंसइत्थीसुं । (क) · बृहत्कल्पभाष्य, 422-423 __(ख) ओघनियुक्ति, 299-300 (ग) पंचवस्तुक, 409-410 (घ) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 204 8. दित्तमदित्ता तिरिआ, जहन्नउक्कोसमज्झिमा तिविहा । एमेवित्थिनपुंसा, दुगुंछिय दुगुंछिया न॥ (क) बृहत्कल्पभाष्य, 424 (ख) ओघनियुक्ति, 302 (ग) पंचवस्तुक, 412 (घ) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 204 9. आलोगो मणुएसुं, पुरिसित्थी नपुंसगाण बोद्धव्यो। पागडकुडुंबिदंडिय, असोय तह सोयवाईणं । (क) बृहत्कल्पभाष्य, टीका, 424 (ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 205 10. (क) पंचवस्तुक सटीका, 413, पृ. 188 (ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 205

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