Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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192...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता अचौर्य महाव्रत की उपयोगिता
जैन दृष्टिकोण के अनुसार चौर्यकर्म करना एक प्रकार की हिंसा है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में उल्लेखित है कि सम्पत्ति प्राणियों का बाह्य प्राण है, क्योंकि उनका जीवन इस पर आधारित रहता है इसलिए किसी भी व्यक्ति की सम्पत्ति का हरण करना उसके प्राणों के हनन करने के समान है।1 प्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा गया है कि यह अदत्तादान (चोरी) दुःख, सन्ताप, मरण एवं भयोत्पाद की जननी है, यह वृत्ति लोभ को बढ़ावा देती है, यह अपयश का कारण है, इसकी सर्वत्र निन्दा की गयी है।72 इसीलिए श्रमण के लिए यह नियम है कि वह छोटी हो या बड़ी, सचित्त हो या अचित्त, कोई भी वस्तु हो, यहाँ तक कि दाँत साफ करने का तिनका भी क्यों न हो, बिना दिये न ले। अदत्त वस्तु न स्वयं ले, न अन्य के द्वारा ले और न लेने वाले का अनुमोदन ही करे।73 इस तरह तृतीय महाव्रत के माध्यम से व्यक्ति के बाह्य प्राणों की हिंसा का त्याग किया जाता है। __व्यावहारिक दृष्टि से अस्तेय व्रत व्यक्ति के अधिकार की सीमा तय करता है, मर्यादित जीवन जीने के लिए उत्प्रेरित करता है तथा पाशविक वृत्तियों का उन्मूलन करता है। श्रेष्ठ जीवन जीने का सन्देश देता है। स्वयं की आवश्यकताओं को न्याय-नीति से और योग्य पुरुषार्थ से प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। अनधिकारिक चेष्टाओं से विरत करता है। अनैतिक एवं स्वार्थपरक वृत्तियों से ऊँचा उठाता है। सामाजिक संघर्ष व असन्तोष की आग को समाप्त करता है। आर्थिक दृष्टि से समाज को विकासशील बनाता है। समाज में फैल रही विषमता और दीनता को दूर करता है। इससे स्वतन्त्रता और स्वाधीनता का उद्भव होता है। मानवीयता प्रस्फुटित होती है। दानव वृत्ति का निष्कासन होता है। सहयोग की भावना चिरस्थायित्व का रूप धारण कर लेती है। अस्तेय महाव्रत के अपवाद
अस्तेय महाव्रत के सन्दर्भ में जिन अपवादों का उल्लेख है उनका सम्बन्ध आवास से है। व्यवहारसूत्र में वर्णन आता है कि यदि साधु-समुदाय दीर्घ विहार कर किसी अज्ञात ग्राम में पहुँचा हो और उसे ठहरने के लिए स्थान नहीं मिल रहा है तथा बाहर वृक्षों के नीचे ठहरने से शीत की वेदना या जंगली पशुओं के उपद्रव की सम्भावना हो तो ऐसी स्थिति में वह बिना आज्ञा प्राप्त किये भी योग्य