Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 67
________________ " I ARHAR । . - । २७) श्री सामंतभद्रसूरि . यह आचार्य प्रायः वनमें-- ही रहतेथे, जीससें लोकोंने वनवासी गच्छ . : नाम रख दीया. तबसें निग्रंथ गच्छका चौथा - नाम वनवासी गच्छ हुआ.. .. .. (४१) . . . . २१८) श्री वृद्धदेवसूरि. श्री वीरात्, ६९६, वर्षे. ' (४२) (१९) श्री प्रद्योतनसूरि.. (२०) श्री मानदेवसूरि लघुशांति कर्ता इन आचा. योने तक्षशिला नगरीके संघको मरीशांत होने वास्ते नडोल नगरसें लघुशांति स्त्रोत्र रच ... कर भेजा. ... . (२१) श्री मानतुंगसूरि. भक्तामरादि स्तवकर्ता तथा - वृद्ध भोजादि राजा प्रतिबोधक. , - 1 (२२) श्री वीराचार्य. इनोंने श्री वीरात्, ७७०,वर्षे ना गपुरमें श्री नमिनाथकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठाकरी... ... (२३) श्री जयदेवसूरि. श्री वीरात्, ८२६, वर्षे. ..

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