Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 394
________________ 34 जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. धास्या में ते वात सांजली उद्यानपालकने धणुं प्रीतिदान आपी, चार अं तेनर सहित राजा वांदवा माटे गुरुनी पासें याव्यो. तिहां गुरुने वांदी यु क्तस्थानकें बेगे. प्राचार्य धर्मदेशना देवा मांझी // श्लोक // उत्सर्गे परमे ष्ठिमंत्रपठनं देवार्चनं वंदनं, प्रत्याख्यानविधानमागमगिरामश्रांतमाकर्णनं // कालेऽर्हरुसंविनक्तमशनं, न्याये न वित्तार्जनं, शीलावश्यकशीलनैरनुदि नं कार्य शुनाः सेवनं // 1 // एबुं देशनामृत पान करीने हर्षवंत थको रा जा गुरुने पूबतो हवो,के नगवन् ! में पूर्वनवें श्यां पुण्य कीधां ले के जेथकी एवी राज्यसंपदा पाम्यो ? आचार्य कर्तुं तुंपूर्वनवें व्यवहारियाने घेर सुंदर नामें कर्मकर हतो, तिहां साधुने संयोगें धर्म पामीने देव जुहास्या विना तथा गुरुने वांद्या विना हुँ जमुं नहीं एवो तें नियम लीधो. ते गुरू मनथी पाल्यो, ते पुण्यना योगें तिहाथकी काल करीने शहां एवी राज्य संपदा पाम्यो बो. हवे शहाथी काल करी देवतानां सुख पामीश. सातमे नवें मोदसुख पा मीश. एवाथाचार्यना मुखरूप कुंमथकी वचनामृत पान करीने राजा, संतोष पामी समकेत मूल बार व्रत गुरुमुखें उच्चरी वांदी पोताने घेराव्यो. पड़ी देवपूजा, गुरुपूजानां फल देखी विशेषथकी चैत्यनिर्माणादिक ध मकार्य करी श्रीजिनशासननो दीपक थयो. एवी रीतें राज्यसुख जोगवी सातमे नवें मोदें जाशे. ए श्रीदेवगुरु नक्तिने विषे सुंदरनी कथा सांजली ने हे नव्यो! तमें देवगुरुनी नक्ति करजो // इति // हवे शास्त्रनुं तत्त्वजूत वाक्य कहे :॥श्य नाविकण तत्तं, गुरुवाणाराहणे कुणह जत्तं // जेण सिवसुरक बीयं, दसरासुद्धी धुवं जहद // 7 // अर्थः-(श्य के०) ए पूर्वोक्त प्रका रें कडं जे (तत्तं के० ) तत्त्व श्रीजिनधर्मनुं सारनृत सम्यक्त्व तेने (जा विकण के०) जावें करी चिंतवीने तेनी वासना राखीने (गुरुयाणाराह णे के) श्रीगुरुनी आज्ञा याराधनने विषे (कुणहजत्तं के० ) यत्नने क रो. हे नव्यो ! एहवं संबोधनपद बाहित्थकी लेवू. गुरु बाझा बाराधनने विषे यत्न करो. एवं कडं ते शा माटे ? तो के जेमाटे देवतुं आराधन जे करवू, ते पण हमणां गुरुने बायत , कारण के देवतत्त्व जे , ते पण गुरुना कह्याथी जापीयें .यें. एरीतें देवतत्त्व अने धर्मतत्त्व एबे गुरुने वायत्त थयां, ए बेनुं स्वरूप जो गुरु समजावे,तो समजीयें,तेमाटे जेणें गु

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