Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ ६. जैनका रत्नकोष नाग पहेलो. नापाकाव्य - पुरुष तीन प्रदारथ साधहिं, धरम विशेष जानि श्राराधहिं ॥ धरम प्रधान हैं सब कोई, खरथ काम धरमहीतें होइ ॥ धरम करत संसार सुख, धरम करत निरवान ॥ धरमपंथ साधन विना, नर तिरियंच समान ॥ ३ ॥ माटे धर्म विषे प्रमाद न करवो, धर्मोद्यम करवाने प्रसादें ललितांग कुमर सुख पाम्यो, धने धर्म नहीं करवाथी सतननामा सेवक दुःख पा म्यो ते बेदुनी कथा कहे ले. कथाः - एहज भरत क्षेत्रने विषे श्री चार्ज नामें नगर बे. तिहां नरवाहन नामें राजा राज्य करे बे, तेने. रूप यौवन निधान, सर्वगुणें करी प्रधान, अमृतस मान जेनी वाली बे एवी कमलानामें स्त्री बे. तेनी कूखें जेम बीपने वि षे मुक्ताफल उपजे, तेवा रूपें करी अमर समान ललितांगनामा कुंअर ज न्म्यो, ते अनुक्रमें सर्व कलामां प्रवीण थयो. साक्षात् कंदर्पावतार जेवो ७ विनय विवेक विचार चातुर्यादि गुणें संपन्न थयो, तेने लाजतां पालतां ते यौवनावस्थाने पाम्यो, तेवारें अनेक प्रकारनां सांसारिक सुख जोंगवतो दिवस व्यतिक्रमा लाग्यो. कोइक अवसरें ते कुमरने कोइ सुजन एवे ना में मित्र व मुख्यो, यद्यपि तेनुं नाम तो सकन बे परंतु परिणामें करी ते तिन बे. हवे तेनी. उपर कुमर अत्यंत प्रीति राखे बे, पण ते पो तानुं दुर्जनपणुं धारतो जाय ॥ यतः ॥ शशिनि खेल्लु कलंकं, कंटकं पद्म नाले, जलधिजलमपेयं पंतेि निर्धनत्वं ॥ दयितजन वियोगं, डुर्नगत्वं स्वरूपे, धनपतिकृपणत्वं, रत्नदोषी कृतांतः ॥ १ ॥ जाइये धीमति गएयते व तरुचौ दंनः शुचौ कैतवं ॥ इति काव्यं ॥ शशी दिवसधूसरोग जितयौवना कामिनी, सरोविगतवारिजं मुखमनदरं स्वाकृतेः ॥ प्रनुर्धनपरायणः सतत दुर्गतिः सनो, नृपांगरागतः खभोजवंति सप्त राज्यानि मे ॥ १ ॥ इति ॥ जेम नागरदेलिमां निःफलतानुं कलंक, चंदनमां कटुतानुं कलंक, लक्ष्मीमां चपलतानुं कलंक, सुवर्णने विषे निर्बंधतानुं कलंक बे, तेम ललितांग कुम विषे वार्ता कांइ कार्य प्रमुख करवां तथा गुणज्ञाता, पटुता प्र मुख जे करवां, ते सर्वमां सऊननो मेलापराखवो, ते कलंक रूप बे. अन्यदा ललितांग कुमर राजाने नमस्कार करवा माटे गयो, विनयवं गुणधंत कुमरने देखी राजा संतुष्ट थइने एक बहुमूल्यनो पूर्वहार रा जायें कुमरने दीघो. कुमर राजाने नमस्कार करी पाठो वलतां ते कुमरनी

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 321