Book Title: Jain Jyotirloka
Author(s): Motichand Jain Saraf, Ravindra Jain
Publisher: Jain Trilok Shodh Sansthan Delhi

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Page 74
________________ जैन ज्योतिर्लोक किरणें २५०० हैं। बाकी सभी ग्रह, नक्षत्र एवं तारकामों की मंद किरणें हैं। वाहन जाति के देव • इन सूर्य और चन्द्र के प्रत्येक (विमानों को) प्राभियोग्य जाति के ४००० देव विमान के पूर्व में सिंह के आकार को धारण कर, दक्षिण में ४००० देव हायो के आकार को, पश्चिम में ४००० देव बैल के प्राकार को एवं उत्तर में ४००० देव घोड़े के आकार को धारण कर(इस प्रकार १६००० हजार देव)सतत खींचते रहते हैं। इसी प्रकार ग्रहों के ८०००, नक्षत्रों के ४००० एवं ताराओं । के २००० वाहन जाति के देव होते हैं। गमन में चन्द्रमा सबसे मंद है । मूर्य उसकी अपेक्षा शीघ्रगामी है । सूर्य से शीघ्रतर ग्रह, ग्रहों से शीघ्रतर नक्षत्र एवं नक्षत्रों से भी शीघ्रतर गति वाले तारागण हैं। शीत एवं उष्ण किरणों का कारण पृथ्वो के परिणाम स्वरूप (पृथ्वीकायिक) चमकीली धातुसे सूर्य का विमान बना हुआ है, जो कि अकृत्रिम है । इस सूय के बिंब में स्थित पृथ्वीकायिक जीवों के आतप . नाम कर्म का उदय होने से उसकी किरणें चमकती हैं तथा

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