Book Title: Jain Hiteshi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 351
________________ ३१९ हैं; खेती आदिके काम मुहूर्त देखकर करते है, रामायण और महाभारतकी आख्यायिकाओंपर रचे हुए नाटक खेलते हैं, और बड़के झाडोके नीचे उनके प्राम्य देवोके मन्दिर होते हैं । वहाँके मुसलमान तक हिन्दू देवोंकी पूजा करते है! वहाँ दो ज्वालामुखी पर्वत हैं उनका नाम उन्होंने अर्जुन और ब्रह्मा रख छोड़ा है। इस द्वीपके पूर्वकी ओर 'वाली' नामका द्वीप है। वहाँके तो प्रायः सबही लोग हिन्दू हैं । वर्णव्यवस्था तक उनमें मौजूद है। विदेशमें हिन्द-मंदिर-विदेशयात्राके लिए चाहे कितना ही प्रतिबन्ध किया जाय परन्तु वह रुकती नहीं। लोग तो जाते ही है अब उनके साथ उनके इष्टदेव भी जाने लगे हैं। नेटालके 'वेरुलम' नामक नगरमें अभी हाल ही गोपाललालका एक विशाल मन्दिर बनकर तैयार हुआ है। बंगलामें जैनसाहित्य-बंगलाके मासिकपत्रोंमें अब जैनसाहित्यकी थोड़ी बहुत चर्चा होने लगी है । अभी अभी ऐसे कई लेख प्रकाशित हुए है। फाल्गुन चैत्रके 'साहित्य में उपेन्द्रनाथ दत्त नामक किसी सज्जनने 'जैनशास्त्र' शीर्षक एक लेख लिखा है। इसमें चार अनुयोगोका संक्षिप्त स्वरूप दिया है । लेखमे भूलें बहुत हैं; एक जगह लिखा है कि "श्वेताम्बरी लोग कहते है कि जैनशास्त्र जैनसाधु और थिकरोके रचे हुए है; परन्तु दिगम्बरी कहते है कि केवल महावीर तीर्थकर ही इनके प्रणेता हैं।" पर यह भ्रम है,। भूलें आगे सुधर जावेंगी-अभी चर्चा होने लगी इतना ही बहुत है । जैनियोंपर नरहत्याका अभियोग--जयपुरकी जैनशिक्षाप्रचारक समितिके सस्थापक पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. इस समय बड़ी विपत्तिमें हैं। उनके माणिकचन्द, मोतीचन्द और जयचन्द

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