Book Title: Jain Gita
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Ratanchand Bhayji Damoha

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Page 145
________________ आत्मा तथापि वह ज्ञान प्रमाण भाता, है ज्ञान भी सकल ज्ञेय प्रमाण साता। है ज्ञेय तो अमित लोक प्रलोक सारा, भाई अत: निखिल व्यापक ज्ञान प्यारा ।।६४८।। ये जीव हैं द्विविध, चेतन धाम सारे, संसारि मुक्त द्विविधा उपयोग घारें । संसारि जीव तनधारक हैं दुखी हैं, हैं मुक्त-जीव तन-मुक्त तभी मुखी हैं ।।६४९।। पृथ्वी जलानल समीर तथा लतायें, एकेंद्रि-जीव सब स्थावर ये कहायें । हैं धारते करण दो, त्रय, चार, पाँच, शंखादि जीव बम हैं करते प्रपंच ॥६५०॥ [ ११५ ]

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