Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 234
________________ 217 मध्यमा अंगुलियों के बीच की) अंगुली से क्रमशः प्रभु जी के नव अगों पर तिलक करके चन्दन पूजा करें। दोनों चरण, दोनों जानुं (घुटने), दोनों कांडे (दोनों हाथों की कलाइयां), दोनों कन्धे, सिर, ललाट (माथा), कंठ (गला), उर (छाती) और नाभीइन नवांगों पर 13 तिलक करने चाहिए। (अ)पुष्प पजा-ताजे, सुगंधित, अखण्ड-फूलों को तश्तरी में लेकर पुष्पपूजा का काव्य पढ़कर प्रभु की फूलों से पूजा करनी चाहिए। यदि कोई पुष्प ज़मीन पर गिर गया हो, अथवा सूघा गया हो, तो उसे नहीं चढ़ाना चाहिए । पुष्पों की पांखड़ियां 'मादि टूटी हों, अथवा पुष्प पांखड़ियां अलग हो गईं हों तो इनसे पुष्पप जा नहीं करनी 'चाहिए । पुष्पमाला को प्रभु के गले में पहनाना चाहिए। जो पूजा के लिए पुष्पमाला बनाई जावे, उसके फूलों को सूई से वेधकर नहीं पिरोना चाहिए । फूलों के डंठलों को धागे से बांधकर फूलमाला बनाकर पूजा करनी चाहिए । खण्डित, पांखड़ियां, सूई से बेधकर बनाई हुई फूलमाला से पूजा करना सदोष है और आशातना होती है। पूजा में काम लाने वाली पजा सामग्री का अपने शरीर और कपड़ों से स्पर्श नहीं होना चाहिए । नाक का श्वास छींक तथा मुख से श्लेष्म आदि भी नहीं गिरे। (3ब) आंगी पूजा-यदि आंगी पूजा करना हो तो प्रक्षाल और चन्दन पूजा करके फिर आंगीपूजा कर लेनी चाहिए। आंगीपूजा तीर्थंकर प्रभु के स्वरूप को आच्छादित करनेवाली कदापि न होनी चाहिए।' पश्चात् पुष्प-पुष्पमाला से पूजा करके जल, चन्दन, आंगी से अंगपूजा समाप्त हो जाती है । अंगपूजा करने तक मुख और नाक पर अवश्य मुखकोष बाँधे रहना चाहिए ।। ____ अंग पूजा करके मूलगंभारे से बाहर चले जाना चाहिए और अगली पूजायें मूलगंभारे से बाहर रंगमण्डप में करनी चाहिये । अंगपूजा के बाद बांधा हुआ मुखकोष खोल लेना चाहिए। (4) धूप पूजा-सुगंधित धूप जलाकर धूपपूजा का काव्य पढ़कर प्रभुजी के 5. अष्टप्रकारी पूजा, नवांग के दोहे अर्थ सहित आगे लिखेंगे । 6. आज कल कई जगह देखा गया है कि कई अबोध लोग आंगी पूजा में प्रभु को चश्मा, मौजे, घड़ी, जाकेट आदि से करते हैं जो प्रभु के स्वरूप से एकदम प्रतिकूल है । प्रतिमा को गोंदादि का लेप करके उस पर कुछ काग़जादि चिपकाकर आँगी करना एकदम आशात्तना करना है । आंगी पूजा फूलों की पंखड़ियों को तोड़कर करना भी नितांता अनुचित है । आंगी का मूलोद्देश्य जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, तथा गृहस्थावस्था में ध्यानमुद्रा की पूजा से सम्बन्धित है । इसका हम विस्तार पूर्वक वर्णन पहले कर आए हैं अत: आंगी पूरे विवेक पूर्वक होनी चाहिए। ___7. मुखकोष खोल देने पर भी पूजा के काव्य स्तुति, स्तोत्र पढ़ते समयतरीय दुपट्टे के एक पल्ले को मुख के आगे रखकर बोलना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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