Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 6
________________ जिस से उसको श्रात्म ज्ञान की प्राप्ति होजाती है सो इस लिये सिद्ध परमात्मा का ध्यान अवश्य करना चाहिये। द्वितीय पाठ [ गुरु भक्ति ] प्रियवर ! शान्तिपुर नगर के उपाश्रय में प्रातःकाल और सायंकाल में दोनों समय नगर निवासी प्रायः सब श्रावक लोग एकहे होकर संवर, और सामायिक बा स्वाध्याय श्रादि धर्म क्रियाएं करते हैं जिम मेरे उन लोगों को धर्म परिचय विशेप होरहा है स्वाध्याय के द्वारा हर. एक पदाथ का यथार्थ ज्ञान होजाता है यथार्थ ज्ञान के होने पर धर्म पर दृढ़ता विशेष बढ़ जाती है स्वाध्याय करने वाला आत्मा उपयोग पूर्वक हर एक पदार्थ के स्वरूप को भली प्रकार से जान लेता है जब यथार्थ ज्ञान होगया तब उस श्रात्मा ने हेय, ज्ञेप, और उपादेय, के स्वरूप को भी मान लिया मर्याद त्यागने चोग्य, जानने योग्य. और ग्रहण करने योग्य, पदार्थों को जब जान गया

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