Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 11
________________ ( ५ ) हैं; किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय के साधुओं ने बुरा समय देखकर कपड़े पहनना शुरू कर दिया। ___ इस प्रकार जैन धर्म के उदय और प्रचार का संक्षिप्त विवरण है। जो कि श्री नेमिनाथ तीर्थङ्कर से लेकर अब तक का तो अाधुनिक इतिहास से भी सिद्ध होता है। उसके पहले इतिहास का कोई साधन नहीं है और न इतिहास ही उससे पहले जमाने तक अभी पहुंच पाया है। हाँ ! भागवत आदि प्रन्थों में भगवान ऋषभ देव का पाठवें अवतार के नाम से जैन ग्रन्थों के अनुसार कुछ कुछ वर्णन पाया जाता है। सिद्धान्त महोदधि महा महोपाध्याय डा० सतोशचन्द्र जी विद्याभूषण एम० ए० पो० एच० डी० ने लिखा है कि-"जैन मत तब से प्रचलित हुआ है जब से संसार में सृष्टि का आरम्भ हुआ है । मुझे इसमें किसी प्रकार का उन्न नहीं है कि जैन दर्शन वेदान्तादि दर्शनों से पूर्व का है।" अब हम जैन धर्म के वर्णन पर आते हैं। जैन धर्म का पूर्ण खुलासा विवरण तो बहुत लम्बा चौड़ा है जिसके लिये बहुत बड़े ग्रन्थ बनाने के साधन जुटाने पड़ेंगे किन्तु हम यहाँ संक्षेप से उस विषय को रखते हैं। जैन धर्म का विवरण संक्षेप से दो रूप में किया जा सकता है। (१) सिद्धान्त *, (२) आचरण ।। इन ही दो रूपों से हम यहाँ जैन धर्म का परिचय पाठकों के सामने रखते हैं। * ( Philosophy ) + ( Religion )

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