Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/७४
(दोहा ) . बस बस रहने दीजिये मत करिये तारीफ।
किस्सा मुझको याद है बिल्कुल शुद्ध शरीफ।। इक बौद्ध हमारी नगरी में जिसके अब हाल सुनायें हम। अजमाने धर्म परीक्षा को...रहता था उसके दिल में गम।। इक दिन ग्वाला से कह बैठा हम देंगे ग्वाली नहीं तुझे। ग्वाली करने वाला था अन्य मालिक भी अन्य नहिं पता मुझे।। ग्वाला कहता ग्वाली दे दो सिद्धान्त हमें न बतलाओ। यह कैसा झूठा मजहब है काला मुँह इसका करवाओ।। फिर युक्ति एक उसको सूझी जो गाय बांध कर राखी है। तब ग्वाली दे गईया लाया अरु मांगी उससे माफी है।। वह बोल रहा था क्षणिकवाद सिद्धान्त वास्तविक झूठा है। तुम भी अब सचमुच निर्णय कर बोलो सच है या झूठा है।।
(दोहा ) सांच-झूठ लेखा सभी है ईश्वर के हाथ। धर्म तुम्हारा देखते कब तक देगा साथ।। समय अभी हमको नहीं कल होगा इंसाफ।
फाँसी ही होगी इन्हें नहीं करेंगे माफ।। वश क्या था कारागार में अब वे निर्भय होकर जाते हैं। सैनिक नृप का अन्याय समझ कर स्वयं होश खो जाते हैं।। वेहोशी देख तभी दोनों मौका पाकर भग जाते हैं। भग जाने के तब समाचार सैनिक नृप को बतलाते हैं।। भय के मार दोड़े-दोड़े जाकर राजा से कहते हैं। धोखा दे वह हम से छूटे अब तो हमरे दिल कपते हैं।। हमरे बस की है बात नहीं वे वीर साहसी काफी हैं। करिये राजा जी कुछ उपाय चाहें कसूर की माफी हैं।। जाओ-जाओ दोड़ो सैनिक मिल जायें तुम्हें जो पाजी हैं। पकड़ो या मारो किन्तु हमें सिर दिखलादो हम राजी हैं।।