Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06 Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation View full book textPage 7
________________ विनम्र आदराञ्जली 828 66. स्वः तन्मय (पुखराज) गिड़िया जन्म स्वर्गवास १/१२/१९७८ २/२/१९९३ (खैरागढ़, म.प्र.) दुर्ग पंचकल्याणक) अल्पवय में अनेक उत्तम संस्कारों से सुरभित, भारत के सभी तीर्थों की यात्रा, पर्यों में यम-नियम में कट्टरता, रात्रि भोजन त्याग, टी.वी. देखना त्याग, देवदर्शन, स्वाध्याय, पूजन आदि छह आवश्यक में हमेशा लीन, सहनशीलता, निर्लोभता, वैरागी, सत्यवादी, दान शीलता से शोभायमान तेरा जीवन धन्य है। अल्पकाल में तेरा आत्मा असार-संसार से मुक्त होगा (वह स्वयं कहता था कि मेरे अधिक से अधिक ३ भव बाकी हैं।) चिन्मय तत्त्व में सदा के लिए तन्मय हो जावे - ऐसी भावना के साथ यह वियोग का वैराग्यमय प्रसंग हमें भी संसार से विरक्त करके मोक्षपथ की प्रेरणा देता रहे -ऐसी भावना है। दादा श्री कंवरलाल जैन ' दादी स्व. मथुराबाई जैन पिता श्री मोतीलाल जैन माता श्रीमती शोभादेवी जैन बुआ श्रीमती ढेलाबाई बहन सुश्री क्षमा जैन जीजा- श्री शुद्धात्मप्रकाश जैन जीजी सौ. श्रद्धा जैनPage Navigation
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