Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/३७ सखी के वचन सुनकर एवं वन की भयंकरता से भयभीत अंजना अत्यन्त कष्टपूर्वक चलने के लिये उद्यमवंत हुई और सखी के हाथ का सहारा पाकर दोनों गुफा के द्वार तक पहुँच गईं।
बिना विचारे गुफा में प्रवेश करने से दोनों को ही भय पैदा होने लगा। इस कारण वे बाहर ही बैठ गईं और ध्यानपूर्वक गुफा के भीतरी दृश्य का अवलोकन करने लगीं।
गुफा के भीतरी दृश्य पर उन की दृष्टि पड़ते ही उनके आनन्द का पार न रहा। उन्होंने देखा कि अहो ! गुफा में एक मुनिराज ध्यान-निमग्न हैं, वे मुनि चारणऋद्धि के धारक थे, उनका शरीर एकदम निश्चल था, उनकी मुद्रा सागरसम गंभीर एवं परमशान्त थी, आँखें नासाग्र थी। आत्मा का जो स्वरूप जिनागम में प्रतिपादित किया गया है, उसी के ध्यान में मुनि तल्लीन थे, वे पर्वत-सम अडोल, आकाश-सम निर्मल एवं पवन की भांति निसंग थे। अहो ! अप्रमत्त दशा में झूलते हुये वे मुनिराज सिद्धसमान निजात्मा की साधना में मग्न थे।
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ऐसे धीर, वीर, गंभीर, मुनिराज को देखते ही दोनों के हर्ष का पार ना रहा। अहा ! धन्य-धन्य मुनिराज !! - इस प्रकार कहती हुई वे दोनों मुनिवर के समीप पहुँची और उनकी परमशान्त मुद्रा के दर्शनों को प्राप्त कर अपने सम्पूर्ण दुखों को भूल गईं। उन्होंने भक्तिपूर्वक हाथ जोड़कर तीन