Book Title: Jain Darshan me Praman Mimansa
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Mannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
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२०४]
जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा (ग) इति ह स्म सकलवेदलोकदेवब्राह्मणगवा परमगुरोमगवत ऋषमाख्यस्य विशुद्धचरितमीरितं पुंसः समस्त दुश्चरितानि हरणम् ।
-भागवत स्कन्ध ५२८ (घ) धम्म० -उसमं पवरं वीरं (४२२) () जैन वाङ्मय-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, आवश्यक, स्थानाङ्ग, ममवायाङ्ग,
__ कल्पसूत्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित । १०-इच्वेइयं दुवालसंगं गणिपिउगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न
कयाइ न भविस्सइ, भुविय, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए,
सासए, अखए, अन्वए, अवहिए निच्चे।-०६० ११-उपायप्रतिपादनपरो वाक्यप्रवन्धः। -स्था. वृ० ३३१८६ १२-स्था० ३२३२१८६ १३-आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी, निर्वेदनी-स्था राम्॥ १४-स्था० ४१२२८२ १५-अनु०। १६ स्था० १३२ १७-स्था० ६६ १८-बाहरण हेउ कुसले...पभूधम्मस्स आघवित्तए -आचा० शा। १६'सू० ११॥ २०-सयं-सयं पसंसंता, गहसंता परंवयं ।
जेउ तत्थ विउस्संति, संसारे से विउस्सिया ॥ -सू० १११-२-२३॥ २१-बहुगुणप्पगप्पाई, कुज्जा अत्तसमाहिए।
जेणन्ने णो विरुज्मेज्जा, तेण तं तं समायरे। सू० शश३१६ २२-इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आरा
हित्ता चाउरतं संसारकतारं वीईवई। इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं . पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहिता चाउरतं संसारकंतारं
वीईवइंसु। इच्चेइय दुवालसंग गणिपिडगं अणागए काले अयंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंत संसारकतारं वीईवहस्सति ।-नं. ५७

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