Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ जैनदर्शन :वैज्ञानिक दृष्टिसे 39 सीमित साधनो में काफी अच्छा काम किया है । इस बीच मैंने अपने संपादकीय लेखों के जरिये आप सब तक अपने विचार पहुँचाये है; किन्तु मुझे अत्यन्त दुःख हुआ कि लगभग सभी महत्व के घटक मौन की चादर ताने रहे और उन्होंने अपनी इस उदासीनता के कारण इस घाव को बढने दिया । अब रोग असाध्य अवश्य हुआ है; किन्तु मेरी दृष्टि में हम अभी भी इस पर नियन्त्रण पा सकते हैं । मैं चाहता हूँ कि 1990 (अब 1991) के वर्ष में हम सब मिल बैठ कर ऐसा कोई उपाय अवश्य करें जिससे शिथिलाचार का यह बदकिस्मत दौर खत्म हो और साध्वाचार के इतिहास में एक नये अध्याय का श्रीगणेश हो । मेरा मानना है कि इस परिवर्तन का पूरा समाज स्वागत करेगा और हम संपूर्ण स्थिति को एक मंगलकारी मोड देने में सफल हो सकेंगे । मेरी इच्छा है कि इस संदर्भ में आप आगे आयें और अपनी रचनात्मक भूमिका संपन्न करें । (4) समाचार-पत्रो में इस अवधि में जो सुर्खियाँ साया हुई हैं और अपनी आँखों से मैंने जो कुछ देखा है; उसके आधार पर यह निष्कर्ष सहज ही लिया जा सकता है कि श्रावकों में आमतौर पर प्रामाणिकता कम हुई है और उनमें नैतिक गिरावट लगातार आयी है । आगम में जिस श्रावकाचार का वर्णन है वह अब खरगोश के सींग हुआ है, यानी स्वप्न की तरह का कुछ हुआ है, अत: यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर हमें पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिये ताकि आने वाली पीढी को संस्कार-शून्य होने से बचाया जा सके और सबकुछ नदारद जैसे हालात पैदा न हो । ___(5) मैंने अनुभव किया है कि हमारी परम्परित शिक्षण-संस्थाएँ या तो सिर्फ औपचारिक रह गयी है या उत्तरोत्तर लुप्त होती जा रही हैं । मेरा प्रस्ताव है कि इन मरणासन्न संस्थाओं का एक वस्तून्मुख सर्वेक्षण हो ताकि उस आधार पर हम इनका नवीकरण कर सकें और इन्हें नये शिक्षा-मानकों से समन्वित कर सकें । क्या हम ऐसा कछ कर सकते हैं कि समाज में तब तक कोई नयी शिक्षा-संस्था न खुले, जब तक मिट-रही-संस्थाओं के नवीकरण का कार्य खत्म न हो ? सर्वेक्षण/ नवीकरण के लिए हमें एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाना होगा। (6) मैंने इस अवधि में हरहमेश महसूस किया है कि समाज में एक सर्वेक्षण इकाई-प्रकोष्ठ हो जो हर तिमाही में समाज की विभिन्न गतिविधियों का एक बेलौस / मार्गदर्शी सर्वेक्षण करे और अपने निष्कर्षों को बिना किसी दबाव के प्रकाश में लाये । इस सर्वे-प्रणाली को इस तरह कुछ विकसित किया जाए कि उसका एक नियमित कार्यालय हो जो पूरे वर्ष कार्य करे । इसकी स्वायत्तता भी हमें निश्चित करनी होगी । इस में किसी तरह की कोई कृपणता न की जाए । प्रस्तावित प्रकोष्ठ को यदि हम शीर्षक और समयबद्ध कार्य सौपेंगे तो इसके निश्चय ही सुखद और तर्कसंगत परिणाम सामने आयेंगे । ___(7) समाज के योजनाबद्ध एकीकरण के लिए ठोस प्रयास किये जाएँ । ये कोशिशें दिखावे-के लिए न हों बल्कि ऐसे आधार तलाश किये जाएँ जिन पर सर्वानुमति संभव हो । मैंने बड़ी तीव्रता से अनुभव किया है कि पूरे समाज में बिना किसी भेदभाव के एक सामान्य भाईचारे का विकास कठिन नहीं है । यदि संभव हो तो हमें सबसे पहले सामाजिक और सांस्कृतिक सर्वानुमति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिये । फिलहाल उन धार्मिक/दार्शनिक जटिलताओं को

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162