Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran Author(s): Supriya Sadhvi Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan View full book textPage 9
________________ दो शब्द ज्ञान-दीप से है जिनके आलोकित यह जग होता। जिनका तेज तपोबल है निज जग का कल्मष धोता। अनुकम्पा औषध से जिनकी, नेत्रहीन सब कुछ लखते। अज्ञानी भी ज्ञानी बन, ग्रन्थ अनेकों है रचते। जिनका गुण-गौरव वर्णन, वाणी का विषय नहीं है। त्याग तपस्या भी जिनकी आगम वर्णित से कम नहीं है। उन गुरुओं के चरणों में, कोटि-कोटि मेरा वन्दन। शब्द-सुमन की माला से ___ करती हूँ उनका अभिनन्दन। जिनके आशिष से मैंने किए शब्द हैं ये अर्जित। आज उन्हीं के चरणों में, - साध्वी सुप्रियाPage Navigation
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