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मुनि वसुधर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गए।
-भव भावना वृत्ति, नेमि चरित्र / बालावबोध, गौतम कुलक, कथा 16 / जैन कथा कोष-भाग 6 (ख) सिंह
रमणीय नामक नगर का रहने वाला एक दृढ़धर्मी श्रावक । किसी समय वह व्यापार के लिए अपने सार्थ के साथ उत्तरापथ जा रहा था। एक नदी के किनारे उसने पड़ाव डाला। संध्या में वह एकान्त स्थान में जाकर सामायिक की आराधना करने लगा। उस प्रदेश में मच्छरों की बहुलता थी। सार्थ के लोगों ने मच्छरों से बचाव के लिए धुआं किया, श्रावक सिंह एकान्त में सामायिक-साधना में तल्लीन था। विक्षुब्ध मच्छर-सेना ने विशेष रूप से सिंह पर आक्रमण कर दिया। सिंह समता साधना में निमग्न था। उसने अकंप और सुस्थिर रहते हुए सामायिक की। दो घड़ी तक मच्छरों ने निराबाध रूप से उसके रक्त का पान किया।
सामायिक साधना की पूर्णता पर सिंह शिविर में लौटा। दक्षिणाभिमुख हवा के चलने से मच्छरों का प्रकोप शान्त हो गया। पर सिंह का शरीर सूजन से भर चुका था। प्रचलित उपचार से कुछ दिन में उसका शरीर स्वस्थ हो गया।
श्रावक सिंह को व्यापार में आशातीत लाभ हुआ। उसने अपने लिए थोड़ा सा धन रखकर शेष धन दान-दया में अर्पित कर दिया। श्रावक-धर्म का पूर्ण निष्ठा से पालन करते हुए आयुष्य पूर्ण कर सिंह देवलोक में गया। वहां से च्यव कर वह मनुष्यभव प्राप्त करेगा और संयम की आराधना द्वारा सर्व कर्म खपा कर सिद्ध होगा। सिंह अणगार
महावीर के एक शिष्य जिनका महावीर पर अनन्य अनुराग और श्रद्धाभाव था। भगवान पर गोशालक द्वारा प्रयुक्त तेजोलेश्या के समाचार से सिंह अणगार बहुत पीड़ित हुए और जोर-जोर से रोने लगे। आखिर उन्हीं द्वारा भिक्षा में लाई गई औषधि से प्रभु व्याधिमुक्त हुए। (देखिए-रेवती ) (क) सिंहगिरि
सोपारक नगर का शासक जो मल्लविद्या का प्रेमी था। (देखिए-अट्टणमल्ल) (ख) सिंहगिरि (आचार्य) ___ आर्य सुहस्ती की परम्परा के एक आचार्य। वे वी.नि. की चतुर्थ सदी के उत्तरार्द्ध में हुए। आर्यदिन्न उनके गुरु थे। ____ आर्य सिंहगिरि के चार शिष्य हुए –(1) आर्य धनगिरि (2) आर्य वज्र (3) आर्य समित (4) आर्य अर्हदत्त। इनमें से आर्यवज्र जैन परम्परा में विशेष रूप से विख्यात हैं।
-कल्पसूत्र स्थविरावली सिंहभद्र
वैशाली नरेश गणाध्यक्ष महाराज चेटक के ज्येष्ठ पुत्र। महाराज चेटक के दस पुत्र थे जिनके नाम क्रमश इस प्रकार हैं-सिंहभद्र, दत्तभद्र, धन, सुदत्त, उपेन्द्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, सुपतंग, प्रभंजन और प्रभास। ____ सिंहभद्र शूरवीर योद्धा था। वह लिच्छवियों का प्रधान सेनापति था। उसके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह अनन्य श्रमणोपासक था। भगवान महावीर के प्रति उसके हृदय में अनन्य आस्था थी। ... जैन चरित्र कोश ...
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