Book Title: Jain Agam Prani kosha
Author(s): Virendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 92
________________ 78 जैन आगम प्राणी कोश लुकंडी [लुकंडी] प्रज्ञा. टी.प. 254 Fox-लोमड़ी देखें-कोकंतिय लम्बाई, चौड़ाई 2 1/2मी. । शरीर भूरे रंग के छल्लों से युक्त। विवरण-महासमुद्रों में पायी जाने वाली इस मछली को सर्वप्रथम पूर्वी आस्ट्रेलिया के पास 1964 में फ्रेंच के प्राणी शास्त्रज्ञ रोबर ली सेरेक ने देखा। इसकी त्वचा खुरदरी और बिना शिल्क वाली होती है। बिना दांत वाला मुंह सफेद रंग का। आंखों का रंग हल्का-हरा। पूरे शरीर का व्यास 70-75 C.M. होता है। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-ManandAnimals, रेंगने वाले जीव] लालाविस [लालाविष] प्रज्ञा. 1/70 A Snake Having A drivelpoison, Ringhal-लालविष (लार में विष वाले) आकार-लगभग 8 फीट से 13 फीट तक लम्बा। लक्षण-इन सर्पो की थूथन आगे की ओर निकली रहती है। शरीर का रंग काला या हल्का भूरा होता है। क्रोधावस्था में फुफकारों के साथ विष थूकता है। विवरण-एकमात्र अफ्रीका में पाए जाने वाला यह सर्प अत्यन्त खतरनाक एवं विषधारी होता है। इसमें दो विशेषताएं होती हैं- (1) क्रोध करने पर यह मुंह से फुफकारों के साथ ऐसी तेजी से विष थूकने लगता है कि उसकी बौछार 2 1/2-3 हाथ तक जाती है (2) यह अन्य नागों के समान अंडे नहीं, बच्चे देता है। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-जानवरों की दुनिया, Snakes of Southern Africa) लंभणमच्छ [लंभणमत्स्य] प्रज्ञा. 1/564 Sound Fish-ध्वनि करने वाली मछली. साही मछली, लंभणमछली आकार-कई फीट लम्बा।कठीण लक्षण-यह मछली गौरैया मछली की भांति अपना शरीर फुला लेती है। इसके शरीर पर साही की तरह तेज काटे रहते हैं। जो शरीर के फूलने पर खड़े हो जाते हैं। विवरण-गौरैया मछली की भांति अजीब सूरत की यह मछली समुद्रों में पाई जाती है। जिसे साही, आवाज करने वाली मछली, लंभग मत्स्य आदि नामों से जाना जाता है। इसके शरीर पर कांटे साही की तरह लगते हैं। शरीर फूल जाने पर यह इधर-उधर जाने में असमर्थ होती है, लेकिन ऐसी दशा में किसी दुश्मन का इस पर लावग [लावका सू. 2/2/6, प्रज्ञा. 1/79 दसा. 6/3 Indian or yellow legged button Quail-at, पीतपद लाविका। आकार-तीतर के आकार वाला रोम पक्षी। लक्षण-चमकती हुई पीली टांगें और चोंच । ग्रीवा का रंग नारंगी बादामी। शरीर की लम्बाई लगभग 10 इंच। विवरण-इसका भोजन बीज, कीड़े-मकोड़े आदि हैं। यरोप में पाया जाने वाला लार्वा सर्दियों के दिनों में अफ्रीका चला जाता है, सर्दियों के बाद पुनः लौट आता है। इसकी आवाज देर तक सुनाई देने वाली नगाड़े की भांति होती है। हमला करने का साहस नहीं होता। जब दुश्मनों का लिक्ख [लिक्ष] जम्बू. 2/6 अनु. 395, 399 खतरा दूर हो जाता है तब साही मछली अपने भीतर Anit, or A Tiny louse-लिक्ष देखें-जूया की हवा को मुंह और गलफड़ों से निकाल देती है। हवा निकलते समय बड़ी तेज आवाज होती है। लिक्ख [लिक्ष] आ.चू. 13/38 भग. 6/125, [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-रेंगने वाले जीव, जम्बू. 2/6, 40 जानवरों की दुनिया] Lesser Florican-लिख, खरमोर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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