Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur

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Page 538
________________ ५) शहडोल जिले की प्राचीन जैन कला और स्थापत्य ३८९ (७) दिगम्बर जैन मन्दिर, बुढ़ार दि० जैन मन्दिर बुढ़ार में एक अलंकृत तोरण द्वार के अवशेष सहित दस प्राचीन जैन कलाकृतियां हैं। इनमें तीन मूर्तियां सात फणों युक्त भगवान् पार्श्वनाथ की एवं दो अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियाँ कार्योत्सर्ग मुद्रा में है । एक मूर्ति में भगवान् पार्श्वनाथ का लांछन नाग पीठिका के रूप में कुण्डली मारे बैठा है । एक द्विमूर्तिका कलाकृति है जिसमें दो आजानुबाहु तीर्थकर कायोत्सर्ग मुद्रा में है । इनमें एक पद्मासन मुद्रा में है एवं दो अन्य छोटो मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ लाल बलए पत्थर से निर्मित है जो कहीं कहीं खण्डित है। ये मूर्तियाँ ९-१० सदी से सम्बन्धित है, जिन्हें हरों, करकटी, सिरौजा, सीतापुर, अर्जुला आदि ग्रामों एवं लखबरिया गुफाओं से प्राप्त कर संग्रहीत किया गया है। निश्चित ही, उस काल में इन स्थानों पर जैन मन्दिर रहे होंगे। (८) तीर्थकर महावार संग्रहालय : शहडोल जिले के पुरावशेषों की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु दो दशाब्दियों पूर्व शहडोल के तत्कालीन जिलाध्यक्ष श्री रामबिहारीलाल श्रीवास्तव की प्रेरणा एवं सहयोग से सिंहपुर एवं उनके निकटवर्ती क्षेत्रों से सैकड़ों जैन-अजैन मूर्तियाँ एवं कलावशेष एकत्रित कर राजेन्द्र क्लब, शहडोल के प्रांगण में संग्रहीत किये गए थे। राजकीय संरक्षण एवं सुरक्षा की व्यवस्था के अभाव में ये मूर्तियाँ शनैःशनैः लुप्त होती गयीं । वहाँ अब कुछ महत्वहीन अवशेष पड़े हैं। अन्तिम तीर्थंकर भ० महावीर का २५००वा निर्वाण महोत्सव सन् १९७५ में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया। उनकी पुण्य स्मृति में जिलाध्यक्ष शहडोल की अध्यक्षता में गठित जिला समिति ने तीर्थंकर महावीर संग्रहालय एवं उद्यान के निर्माण का संकल्प किया। फलस्वरूप नगर के मध्य में छत्तीस हजार वर्गफीट के भूभाग पर सार्वजनिक सहयोग से इसका निर्माण किया गया और महावीर के त्याग के मार्ग के अनुरूप उसे सर्व उपयोग हेतु जिला पुरातत्वीय संघ को समर्पित कर दिया गया। इस संग्रहालय में १०वीं-११वीं सदी के ३५ पुरावशेष एवं मूर्तियां हैं। इनमें ५९ सेमी ऊंची एक मूर्ति भगवान आदिनाथ की है जिसके दोनों ओर दो-दो तीर्थंकर क्रमशः पद्मासन एवं कार्योत्सर्ग मुद्रा में अंकित हैं । अलंकृत इन्द्र, गज विद्याधर आदि पूर्ववत् है । मूर्ति पुरातत्वीय महत्व की है। सन्दर्भ१. शहडोल सूचना एवं प्रकाशन विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल । la. Prof. S. R. Sharma, Some Aspects of Archaeological Works in M. P. (Hindi). Govt Degree College, Shahdol, English Section, Page 6. (1963-66). 2. Rewa State Gazetteer, Vol. IV, 1907, Page 18-87. 3 RK. Sharma. "Royal Patronage to Art of Kalchuri Dynasty", Prachya Pratibha, Bhopal, Vol. V, No. 2, July 1977, Page 21. ४. शिवकुमार नामदेव, भारतीय जैनकला को म०प्र० को देन, सन्मतिवाणी, इन्दौर, मई ७५, पृ०१३ । 5. Rewa State Gazetteer, Vol. IV, 1907, Page 104. ६. डॉ. राकेशकुमार उपाध्याय, 'शहडोल जिले को पुरातत्त्वीय संपदा' दैनिक जनबोध, शहडोल, दिनांक १९-३-७९, पृष्ठ ३ । 7. A.Cunnighm, A.S. I. R., Vol. VII, P. 239-46. ८. बालचंद जैन, जैनकला एवं स्थापत्य, खण्ड ३, अध्याय ३८, पृष्ठ ५९६ । 9. S. K. Dixit, A Guide to the State Museum-Dhabela, Nowgaon, P. 12. अवधेशप्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा, म०प्र०की जैन विद्या संगोष्ठी में पठित शोधपत्र का सार । ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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