Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

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Page 212
________________ वस्तुस्वरूप का दृढ़तम दुर्ग- यह वस्तुस्वरूप का दुर्ग बड़ा मजबूत है। किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु का न द्रव्य, न स्वभाव, न गुण, न पर्याय कुछ प्रवेश नही करता है। बड़े-बड़े रासायनिक, वैज्ञानिक प्रयोग भी कर लें तो वहाँ भी आप मूल बात पायेगें की जो मूल सत् है वह पदार्थ न किसी दूसरे रूप होता है और न उसका कभी अभाव होता है। यह बात अवश्य चलती है कि किसी पदार्थ के संयोग का निमित्त पाकर दूसरे पदार्थ भी दूसरे के अनुरूप परिणमतें है । इस ही को व्यवहार में लोक कहतें है। देखो यह भी बन गया। जो यह है वह यह ही रहेगा। जो वह है वह वह ही रहेगा। केवल निमित्तनैमित्तिक प्रसंग में निमित्त के सद्भाव के अनुरूप पर्याय बन जाती है। जगत में जितने भी सत् है उनमें से न कोई एक कम हो सकता है और न कोई असत् सत् बन सकता है, केवल एक पर्याय ही बदलती रहती है। जितने भी पदार्थ है वे सब परिवर्तनशील होते है, पर मूल सत्व को कोई पदार्थ नही छोड़ता है। यह मै आत्मा स्वंय सत् हूं और किसी भी पररूप नही हू । योगी का ज्ञान, समाधिबल व आनन्दविकास ये सकल पदार्थ अपना सत्व तभी रख सकते है जब त्रिकाल भी कोई किसी दूसरे रूप न परिणमन जाये। ये दो अंगुली है एक छोटी और एक बड़ी । ये अपना सत्व तभी रख सकती है जब एक किसी दूसरे रूप न परिणम जाये। अंगुली का दृष्टान्त बिल्कुल मोटा है क्योकि यह परमार्थ पदार्थ नही है । यह भी मायारूप है, किन्तु जो परमार्थ सत् है वह कभी किसी दूसरे रूप हो ही नही सकता है। जब ऐसा समस्त पदार्थो का स्वरूप है तब मै किसके लिए मोह करूं, किसके लिए राग और द्वेष करूँ? परोपयोग के व्यर्थ अनर्थ श्रम से विश्राम लेकर जो अपने आत्मा में ठहरता है, सहज विश्राम लेता है ऐसे योगी पुरुष इस समाधिबल से कोई विचित्र अलौकिक अनुपम आनन्द प्रकट होता है। विषयविपदा भैया ! ये विषयो के सुख कोई आनन्द है क्या? इनमें तो दुःख ही भरा हुआ है। जितने काल कोई भोजन कर रहा है उतने काल भी वह शान्त नही है। सूक्ष्म दृष्टि से देखो - इन विषयो के सुख में जो भी कल्पना उठती है वह शान्ति की प्रेरणा को पाकर नही उठती है, किन्तु अशान्ति की प्रेरणा को पाकर उठती है, कोई भी विषयभोग, किसी भी इन्द्रिय का साधन न पहिले शान्ति करता है, न भोगते समय शान्ति देता है और न भोगने पर शान्ति देता है। जिन भोगो के पूर्व वर्तमान और भविष्य अवस्थ क्लेशरूप है उन ही भोगो के लिए अज्ञानी पर शान्ति देता है। जिन भोगो के पूर्व वर्तमान और भविष्य अवस्थ क्लेशरूप है उन ही भोगो के लिए अज्ञानी पुरूष अपना सब कुछ न्योछावर किये जा रहे है आनंद यहाँ कही न मिलेगा । अरे एक दिन ये सब कुछ छोड़कर चले जाना है। जिस समय है उस समय भी ये तेरे कुछ नही है। तू सबसे विविक्त प्रत्यक्ष ज्योतिस्वरूप् अपने अंतस्तत्व का अनुभव करे। यही धर्म पालन है । 212

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