Book Title: Hum Aarya Hain
Author(s): Bhadrasen Acharya
Publisher: Jalimsinh Kothari

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Page 18
________________ [ १३ ] अपितु श्रार्य हैं। काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मन्दिर के बाहर एक शिला लेख पर संस्कृत में सूचना लिखी है "आर्येतराणां प्रवेशोनिषिद्धः" अर्थात् आर्यों से भिन्न लोगों का प्रवेश इस मन्दिर में मना है । इस घोषणा से भी स्पष्ट प्रकट होता है कि काशी के विद्वान सर्व सम्पूर्ण सनातन धर्मावलम्बियों को आर्य समझते हैं, हिन्दू कदापि नहीं । कतिपय वर्ष व्यतीत हुए एक सनातन धर्मी विद्वान ने "पद्मचन्द्रकोश" नामक एक ३५ हजार संस्कृत शब्दों का एक कोश लिखा है । उपर्युक्त कोश में जहां हिन्दू शब्द का नाम तक भी नहीं वहाँ " आर्य " शब्द के उपर्युक्त विद्वान ने इतने सुन्दर अर्थ किये हैं कि जिसको पढ़कर हृदय गद् गद् हो जाता है । उपरोक्त कोश में जो आर्य शब्द के अर्थ लिखे हैं, हम उन्हें पाठकों की सेवा में यहां उद्धृत करते हैं । श्रार्य - स्वामी मालिक, गुरु, सहद्, मित्र, श्रेष्ठ सब से अच्छा वृद्ध, बूढ़ा, लायक, नेक, श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुआ, पूजा के लायक उदार चरित, जिसका चित्त शांत हो, कर्तव्य करे, कर्तव्य कभी न करे और जो यथार्थ आचार में रहे, वह जन आर्य है । वाचक वृंद देखें कि उपर्युक्त सनातन धर्मी विद्वान् ने श्र शब्द के कितने सुंदर तथा गौरवान्वित अर्थ किये हैं, इन सुन्दर थों के देखने से ज्ञात होता है कि सनातन धर्मी विद्वानों के हृदयों में आर्य शब्द के प्रति कितना सन्मान है । यह तो हुए विद्वानों के विचार अब सर्व साधारण जनता को लीजिये । दक्षिण भारत में जहां कि आर्यसमाज का प्रचार नहीं

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