Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

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Page 474
________________ 458 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ४४. वैराग्यविनती, जैन गुर्जर कविओ, प्रथम भाग, पृ.७१-७८। ४५. पार्श्वजिनस्तवन, खैराबाद स्थित गुटके में निबद्ध हस्तलिखित प्रति। ४६. गोड़ी पार्श्वनाथ स्तवनम्, जैन गुर्जर कविओ, पहला भाग, पृ. २१६। ४७. सीताचरित, का. ना. प्र. प्रत्रिका का बारहवां त्रैवार्षिक विवरण, ऐपेन्डिक्स २, पृ. १२६१, बाराबंकी के जैन मन्दिर से उपलब्ध प्रति। ४८. नाटक समयसार, मंगलाचरण, पृ.२। ४९. दौलत जैनपद संग्रह, कलकत्ता, पद ३१, पृ.१९। तेरहपन्थी मन्दिर, जयपुर पद संग्रह ९४६, पत्र ९०, हिन्दी जैन भक्त कवि और काव्य पृ.२१४। ५१. हिन्दी पद संग्रह २०६। ५२. वही, पृ. १५, रूपचन्द भी लघुमंगल में अद्भूत है प्रभु महिमा तेरी, वरी न जाय अलिप मति मेरी' कहकर लघुता व्यक्त करते हैं। ५३. बनारसीविलास, कल्याण मन्दिर स्तोत्र, भाषानुवाद, पद्य ४ और ६ पृ. १२४। ५४. वही, पृ.१००। ५५. वही, पृ. १६३। ५६. बुधजनविलास, पद ५२, पृ.२९ । ५७. हिन्दी पद संग्रह, नवलराम, पृ. १८२। ५८. कर्मघटावलि, कनक कीर्ति, बधीचन्द दि. जैन मन्दिर, जयपुर में सुरक्षित हस्तलिखित प्रति, गुटका नं.१०८। ५९. सीमान्धर स्वामी स्तवन, ९ जैन स्तोत्र संदोह, प्रथम भाग, अहमदाबाद १९३२, पृ. ३४०-३४५। ६०. आहे मुख जिसु पुनिम चन्द नरिंदनमित पद पीठ। त्रिभुवन भवन मंझारि सरीखउं कोई न दीठ। आहे कर सुरतरु वरं शाख समान सजानु प्रमाण। तेह सरीखउ लहकड़ी भूप सरूपहिं जांणि।। आदीश्वर फागु, १४४, १४६, आमेरशास्त्र भण्डार, जयपुर में सुरक्षित हस्तलिखित प्रति, क्रमसंख्या, ९५। ६१. रूपचन्द शतक (परमार्थी दोहाशतक, जैन हितेषी, भाग ६, अंक ५-६। ६२. जाके देहु-द्युति सौंदसो दिशा पवित्र भई-ना.स.जीवद्वार, २५।

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