Book Title: Hindi Gadya Nirman
Author(s): Lakshmidhar Vajpai
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 173
________________ १७३ साहित्य का स्वरूप] - । करानेवाली समीक्षाएँ या व्याख्याएँ अर्थ-बोध कराना मात्र, किसी बात की जानकारी कराना मात्र, जिस कथन या प्रबन्ध का उद्देश्य होगा वह साहित्य के भीतर न आयेगा और चाहे जहाँ जाय। इस दृष्टि से साहित्य-क्षेत्र के भीतर आने वाली रचनाओं के तीन ''रूप तो हमारे यहाँ पहले से मिलते हैं- श्रव्य-काव्य, दृश्य-काव्य और * कथात्मक गद्य-काव्य । इनमें से पहले दो तो अब तक ज्यों के त्यों बने हैं। कथात्मक गद्य-काव्य का स्थान अब उपन्यासों और छोटी कहानियों ने लिया है। चौथा रूप काव्यात्मक गद्य प्रबन्ध या लेख । पांचवाँ है वह विचारात्मक निबन्ध या लेख जिसमें भावव्यंजना और भाषा का वैचित्र्य या चमत्कार भी हो अथवा जिसमें पूर्वोक्त चारों प्रकार की कृतियों की मार्मिक समीक्षा या व्याख्या हो । काव्यसमीक्षा के अतिरिक्त और प्रकार के. विचारात्मक निबन्ध साहित्य कोटि में वे ही आते हैं जिनमें बुद्धि के अनुसन्धान-क्रम या विचारपरम्परा द्वारा गृहीत अर्थों या तथ्यों के साथ लेखक का व्यक्तिगत वाग्वैचित्र्य तथा उसके हृदय के भाव या प्रवृत्तियाँ पूरी-पूरी झलकती हैं। इस प्रकार मेरे विचार के विषय ठहरते हैं काव्य, नाटक, उपन्यास, गद्यकाव्य , और निवन्ध; जिसमें साहित्यालोचन भी सम्मिलित है। . ' उपयुक्त पाँचों प्रकार की रचनाओं में भाव या चमत्कार के परिणाम में ही नहीं, उसकी शासन-विधि में भी भेद होता है। कहीं तो वह शासन इतना सर्वग्रासी और कठोर होता है कि भाव या चमत्कार के इशारे पर भी भाषा अनेक प्रकार के रूप रंग बना कर नाचती हुई दिखलाई पड़ती है। अपना खास काम लुक-छिप कर करती है । कहीं इतना कोमल होता है कि वह अपना पहला काम खुल कर करती हुई भाव का कार्य साधन करती है। । और अच्छी तरह करती है । भाषा का असल काम यह है कि वह प्रयुक्त शब्दों के अर्थ-योग द्वारा ही या तात्पय्य वृत्ति द्वारा ही पूर्वोक्त चार प्रकार के अर्थों में से किसी एक का बोध कराये । जहाँ इस रूप में कार्य न करके वह ऐसे अर्थों का बोध कराती है जो बाधित असम्भव, असंयत या असम्बद्ध होते है वहाँ वह केवल भाव या चमत्कार का साधन मात्र होती है। उसका

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