Book Title: Hemchandra Kosh
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 177
________________ हेमचंद्र नानार्थ १२५ का-३ कण्ठरोगान्तरे। गवि ॥ २२१ ॥ लोहिताक्टरोहिण्योलवणेोराक्ष से ब ले अस्थिभेदे लवणाविट्लवर्णनाम चिन्हयोः॥ २२२ ॥ लक्ष्मणल क्षणस्तुस्या सौ मित्रौ लक्ष्मणा यया ।। लक्ष्मणः श्रीयु तेलक्ष्मणौषधी सारस स्त्रियां ।। २२३॥ वरुणाऽप्यतौ रक्षेवर णोवरुणद्र मे ।। प्राका रेवरणंवृत्यांवरणः स्यान्मतं गजे ॥ २२४ ॥ वारणन्तुप्रतिषेधे ब्राह्म विप्रसहतेो ॥ वेदेवब्राह्मणो विप्रेवारुणी पश्विमासुरा ।। २२५ ॥ गण्डदूर्वा विषाणतुभुङ्गे काले भदंत योः ॥ विषाणी मे वशृङ्ग्यस्या द्विपणिः पण्यह ट्टयोः ॥ २२६ ॥ पण्यनी ध्याश्रमणस्तु निर्यथे निंद्य जीविनि। श्रवणनिक्षत्र भेदे श्रावणश्रवसिश्रुतौ ॥ २२७॥ शरणर क्षणे देवधरक्षकयोरपि॥ श्रीपर्णमग्निमन्ये ब्जे श्रीपर्णी शाल्मली हठे ॥ २८ ॥ संकीर्ण निचिताशु जौ सरणिः श्रेणिमार्ग यो । सारणः स्यादतीसारेदशकधरमंत्रिणि॥२२९॥ सिंहाणंतुघ्राणमलेभ्यः किट्टेकाच भाजने ॥ सुषेणो वह सुग्रीव वैद्ययोः करमर्द के । २३ सुवर्णका चने कर्षे क वणीला मवातरे कृष्णा गुरुणि वित्ते च सुवर्णः कृतमाल के ॥ २३१ गरुडे स्वर्णचूडेच सुपर्णा विनतान्जिनी ॥ हरणं च हतौ दो हिम यौ तकादिधनेऽपिच ॥ २३२ ॥ हरिणौ पाण्टु सार है। हरिणी चारु योषिति ॥ सुवर्णप्रति मायां च हरिता वृन्तभेद द्यौः ॥ २३३ ॥ हर्षणस्तु श्राद्धदे हर्ष के योगरुग्भिः ॥ हरेणुः कुल पोषायां रेणुका या सतौन के ॥ ॥२३४॥ हिरणं हिरण्यमिववराटे हे निरेत सि॥ त्रिस्वरणान्ताः ॥ अमृतयज्ञशेषे तु सुधामोसा श्वयां चिते ॥ २३५॥ अन्नको चनयो जग्धौ स्वे स्वादु नि रसायने ॥ घृते हुये गोर से चा मृतौ धन्वंतरी सरे ॥९ २३६॥ अमृतामल की पथ्या गुडूची माग धीषुच ॥ अनृतं कर्षणेऽली के चाक्षतं स्याद हिंसि ते ॥ २३७ ॥ ष ण्डेला जेष्ठ दितंतुवातव्याधौहतेः चिंते ॥ अजित स्तीर्थरुद्धे देव देवि इमाव निर्जिते ॥ २३८ ॥ अच्युताहा दशसर्गेकेशवा भ्रष्टयेोरपि ॥ अव्यक्तं प्रकृतावात्मन्य व्यक्तोः स्फुटम् खै योः ॥ २३९ ॥ अनं तं खे निश्वधावनन्तस्तीर्थक ड्रिदि ॥ विश्मशेषेः व्यनंता तु गुडूची भूहुरालभा ॥ २४०॥ विशल्याली गली दूर्वाशारि वा हे

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