________________ हस्तिकुण्डी की ऐतिहासिक सामग्री-१५ श्रीमद्वलभद्रगुरोविदग्धराजेन दत्तमिदं // 16 // कृष्णकादश्यामिह समथितं मम्मटनपेरण // 20 // प्रसारित करने का संवत् 673 बताया गया है एवं विदग्धराज के पुत्र मम्मट के समर्थन का संवत् 666 लिखा गया है / वस्तुतः ये 673 व 666 वि. के शिलालेख विदग्धराज के पौत्र एवं मम्मट के पुत्र धवल द्वारा ही पुरानी यादों को ताजा करने के लिये उत्कीर्ण करवाये गये हैं। धवलराज के यह शिलालेख उत्कीर्ण करवाने से पूर्व विदग्धराज की यह राजाज्ञा एवं उसके पुत्र मम्मट का समर्थन शायद भूर्जपत्र अथवा ताम्रपत्रों पर ही रहा होगा। यदि ऐसा नहीं होता तो इस शिलालेख में दो संवतों का उल्लेख नहीं होता और मूलनायक बदलने के प्रमाण स्वरूप प्रथमतीर्थनाथाकृति प्रतिष्ठिपत् का प्रयोग नहीं होता। इदं चाक्षयधम्मसाधनं शासनं श्रीविदग्धराजेन दत्तं संवत् 973 // श्री मम्मट राजेन समथितं संवत् 196 // अर्थात् यह अक्षय धर्म साधन व प्राज्ञा श्री विदग्धराज ने दी है / सं. 673 / श्री मम्मटराज ने समर्थन किया संवत् 666 / _ वि.सं. 1053 के शिलालेख को उत्कीर्ण करने वाला योगेश्वर नाम का सोमपुरा था। दोनों प्रशस्तियों के कवि भी एक नहीं, क्योंकि दोनों की भाषा एक-सी नहीं है। 1053 विक्रमी में भगवान ऋषभदेव के बिम्ब की प्रतिष्ठा के समय