Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 42
________________ (३५) यथा जो यह अभी के काल के श्रमण निग्रंथ भी २० रात्रियुक्त १ मास वीतने पर वर्षावास के पर्युषण करते हैं तथा हमारे भी प्राचार्य उपाध्याय वर्षाकाल के यावत् ५० दिने पर्युषण करते हैं यथा हमारे प्राचार्य उपाध्याय वर्षाकाल के यावत् ५० दिने पर्युषण करते हैं तथा हम लोग भी वर्षा काल के २० रात्रिसहित १ मास (५० दिन ) वीतने पर वर्षावास के श्रीपर्युषणपर्व करते हैं और ५० दिन के भीतर भी पर्युषण करना कल्पता है, लेकिन ५० वें दिन की रात्रि को श्रीपर्युषण पर्व किये विना उल्लंघन करना नहीं कल्पता है । तपगच्छ के श्रीविनयविजयजी ने अपनी रची हुई कल्पमूत्र की सुबोधिका टीका में लिखा है कि गृहिज्ञाता तु द्विधा सांवत्सरिक कृत्य विशिष्टा गहिज्ञातमात्रा च तत्र सांवत्सरिक कृत्यानि सांवसरप्रतिक्रांति, १ लुंचनं २ चाष्टमंतपः ३ ॥ सर्वार्हद्भक्तिपूजा च ४ संघस्य क्षामणं मिथः ५ ॥ १ ॥ ____ भावार्थ नियुक्ति तथा चूर्णि और टीका इनों के उक्त पाठों के अनुप्तार चंद्रवर्षों में १ मास २० दिने भाद्र सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्य विशिष्ट पर्युषणा और दूसरी अभिवड़ितवर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्ये विशिष्ट पर्युषणा करने की है (तत्र ) उस गृहिज्ञात पर्युषण में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण १ केशलुंचन २ अष्टमतप ३ चैत्यपरिपाटी ४ और संघ के साथ क्षामणा ५ यह सांवत्सरिक कृत्य करने के हैं इसी लिये पौष आषाढ़ मास की वृद्धिवाले जैन टिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धितवर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्य विशिष्ट पर्युषणा के स्थान में जैनटिप्पने का इस काल में सम्यग् ज्ञान नहीं है इसीलिये श्रावण आदि मासों की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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