Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ । की अनुशासनहीनता पर नियंत्रण पाने का साहसी कदम उठाया, पराक्रमी प्रयत्न किया तो देश उन्हें सम्माननीय मानकर दुर्गादेवी के रूप में देखने लगा। वर्तमान में हिन्दू धर्म के अधिकांश जितने भी आराध्य देवी-देवता हैं; यदि हम उनके इतिहास की खोज करें तो हम उन्हें भी किसी न किसी क्षेत्र में अपूर्व एवं अद्भुत साहस के काम करनेवाले अपने समय के 'वीर' 'महावीर' के रूप में ही पायेंगे। जैन पुराणों में विस्तार से ६३ शलाका पुरुषों के चरित्र लिखे गये हैं। इन महापुरुषों के चरित्र आदर्श एवं प्रेरणादायक होने से क्षेत्र व काल की सीमाओं में सीमित न रहकर व्यापकरूप से लोकरुचि के विषय बन गये हैं। २४ तीर्थंकरों के सिवाय बलभद्र राम, नारायण श्रीकृष्ण, चक्रवर्ती भरत आदि इसीप्रकार के लोकमान्य महापुरुष हैं। जैन पुराणों में इन सबकी प्रधानता है । साहित्य में ये अधिकांश नायक के रूप में ही प्रस्तुत किए गये हैं। जैनधर्म में तो आराध्य के रूप में या अर्चना-पूजा करने के लिये पूज्यता का मुख्य आधार वीतरागता एवं सर्वज्ञता को माना गया है; अत: जो गृहस्थपना छोड़कर, मुनिधर्म अंगीकार कर निजस्वभाव की साधना करके, मोहादि कर्मों का नाश कर केवलज्ञानी अरहंत एवं सिद्ध पद को प्राप्त हुए हैं, वे ही देवरूप में आराध्य माने गये हैं। शेष सबको पुराणपुरुष के रूप में आदरपूर्वक स्मरण किया गया तथा उनके आदर्श चरित्रों से भविष्य सबक सीखे; एतदर्थ प्रथमानुयोग के रूप में उनके आदर्श चरित्र लिखे गये हैं। प्रस्तुत हरिवंश कथा में हरि वंश में जन्मे नारायण श्रीकृष्ण के पूर्वजों का, विशेषरूप से उनके शूरवीर एवं अनेक विद्याओं के धारी पिता कुमार वसुदेव की शूरवीरता एवं धर्मवीरता के वर्णन के साथ-साथ लीला पुरुषोत्तम नारायण श्रीकृष्ण, तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ तथा अनेक शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक आदर्श उपकथाओं और पाण्डव एवं कौरवों के चरित्रों का प्रमुखरूप से वर्णन है, जिसके अध्ययन से ये चरित्र हमें निःसन्देह प्रशस्त मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। 50+ PFFE

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