Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
डॉ० देवीलाल पालीवाल : राजस्थान के प्राचीन इतिहास की शोध : ६३६
भारत के राष्ट्रीयता आन्दोलन के विकास ने भारतीयों को अपने देश के इतिहास की शोध एवं रचना की दृष्टि से भारी प्रेरणा प्रदान की. राजस्थान के इतिहास के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है, स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व के वर्षों और बाद में राजस्थान के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग एवं उनके अलग-अलग कालों पर कई शोधपूर्ण ग्रन्थों की रचना की गई है. हरविलास शारदा कृत महाराणा कुम्भा एवं महाराणा सांगा ग्रन्थ, डा० मथुरालाल शर्मा कृत कोटा राज्य का इतिहास, डा० रघुवीरसिंह कृत पूर्व आधुनिक राजस्थान, रतलाम का प्रथम राज्य मालवा में युगान्तर अमर ग्रन्थ, पृथ्वीसिंह मेहता कृत 'हमारा राजस्थान' महामहोपाध्याय श्रीविश्वेश्वरनाथ रेउ कृत मारवाड़ का इतिहास, श्रीहनुमान शर्मा कृत 'जयपुर राज्य का इतिहास श्री जगदीशसिंह गहलोत कृत 'मारवाड़राज्य का इतिहास', राजपूताने का इतिहास भाग २, श्रीरामनारायण दुग्गड़ कृत राजस्थान रत्नाकर, राणासांगा, पृथ्वीराज चरित्र, पंडित रामकरण आसोपा द्वारा रचित एवं सम्पादित विभिन्न ग्रन्थ आदि प्रमुख हैं. इसके अतिरिक्त पिछले कुछ वर्षों में मुगल काल, मराठा काल एवं आधुनिक काल से सम्बन्धित राजस्थान के इतिहास के कतिपय शोध प्रबन्ध विभिन्न विद्वानों द्वारा तैयार किये गये हैं, जो विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा स्वीकृत हैं.
एक लम्बे अर्से से राजस्थान में राजस्थान के प्राचीन इतिहास की शोध की दृष्टि से कई संग्रहालय अत्यधिक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कार्य कर रहे हैं. भूतपूर्व रियासतों में नरेशों द्वारा स्थापित पुरातत्व संग्रहालयों एवं पुस्तकालयों ने इस दिशा में भारी प्रयास किया और आज भी उनमें से अधिकांश उपयोगी कार्य कर रहे हैं. जिनमें विक्टोरिया म्यूजियम एवं सरस्वती भंडार उदयपुर, शार्दूल रिसर्च इंस्टीट्यूट बीकानेर, अलबर्ट म्यूजियम जयपुर, अनूप संस्कृत लाइब्रेरी बीकानेर, अलवर म्यूजियम, जोधपुर म्यूजियम आदि प्रमुख हैं. इन सभी संग्रहालयों में शिलालेखों, सिक्कों, ताम्रपत्रों, शस्त्रास्त्रों एवं हस्तलिखित पुस्तकों आदि का संग्रह है. राजस्थान का आर्केयोलोजिकल विभाग राज्य के विभिन्न भागों में सर्वे एवं खुदाई का कार्य कर रहा है और प्राचीन ऐतिहासिक खोज में निरन्तर संलग्न है. इस समय राजस्थान में मुख्यतः आहड़ बीकानेर, भरतपुर, वैराट् आदि कतिपय स्थानों पर खुदाई आदि के काम हो रहे हैं, जिनसे प्रागैतिहासिक काल तथा बाद के काल की महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ उपलब्ध हुई हैं.
इन संस्थाओं ने पिछले अर्स में कई बहुमूल्य हस्तलिखित पुस्तकों का संग्रह एवं प्रकाशन कार्य किया है. इनमें से कतिपय संस्थाओं द्वारा शोधपत्रिकाएँ भी प्रकाशित की जाती हैं, जैसे कि राजस्थान विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित 'शोध पत्रिका' शार्दूल रिसर्च इन्स्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान भारती, राजस्थानी शोध संस्थान की 'परम्परा', पिलानी का प्रकाशन 'मरु भारती' बिसाऊ की 'वरदा' ये पत्रिकाएँ राजस्थान में हो रहे इतिहास के शोध कार्य का सही दिग्दर्शन कराती हैं और प्रेरणा देती हैं.
इस समय राजस्थान में प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, शोध एवं प्रकाशन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य मुनि जिनविजय के मार्गदर्शन में जोधपुर स्थित एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित राजस्थान प्राच्य विद्याप्रतिष्ठान जोधपुर कर रहा है. एक तरह से यह प्रतिष्ठान मुनि जिनविजय की ही कृति है और उनके संकल्प एवं संयोजन के कारण आज उसने एक बृहद् रूप धारण कर लिया है पिछले काल में उसने विभिन्न विषयों के कई हस्तलिखित ग्रन्थों के प्रकाशन एवं सम्पादन का कार्य किया है. मुनि जिनविजय संस्कृत और विद्वान् हैं. जैन साधनों से उपलब्ध होने वाले प्राचीन इतिहास से उन्हें सदैव से बड़ा अनुराग रहा है. आपने प्राचीन जैन लेखों की दो पुस्तकें प्रकाशित कीं, जिनमें से एक में सुप्रसिद्ध जैन राजा खारवेल का लेख है. दूसरी बृहत्काय पुस्तक में गुजरात, काठियावाड़, राजपूताना आदि से मिलने वाले ५५७ लेखों का संग्रह है. इसके अतिरिक्त आपने शताधिक इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का संपादन किया है. दर्जनों ऐतिहासिक निबन्धों द्वारा पुरातात्विक जगत् की अनुकरणीय सेवा की.
प्राकृत के बड़े
राजस्थान का इतिहास जितना लम्बा रहा है, ऐतिहासिक सामग्री भी उतनी ही विपुल रही है. राजस्थान के प्राचीन इतिहास के शोध, मनन एवं सम्पादन का कार्य जितना विशाल है, उतना ही परिश्रमपूर्ण एवं कठिन भी है. आज भी इस
Jain Edugati Intonal
Forte & Personally
www.sainlony.org